मोह्ब्बत को मजबूरी का नाम मत देना ।
हकीकत कॊ हाद्सॊ का नाम मत देना ।
अगर दिल मे प्यार हॊ किसी के लिये ,
तो उसे दोस्ती का नाम मत देना ।
Monday, November 30, 2009
Wednesday, November 18, 2009
समीर लाल जी ने चिट्ठी भेजी है...
समीर लाल जी, आप सब के उड़न तश्तरी और हमारे जबलपुरियों के चाचा. आज बहुत बार खत लिखने के बाद बस एक कविता से जबाब दे गये.
मैं तो समीर चाचा के साथ बचपन से रहा हूँ हमेशा. फिर चाहे वो उनका दफ्तर रहा हो, राजनितिक मंच या पारिवारिक काम, मैं हमेशा साथ रहा. उनका खास स्नेह मुझ पर हमेशा रहा. वो जब भी कहीं जाते, मैं उनके बाजू में जरुर रहता चाहे जबलपुर में या जबलपुर के बाहर भोपाल, दिल्ली या मुम्बई.
समीर लाल जी
भारत छोड़ने के बाद भी वो जब भी यहाँ आते हैं, जबलपुर में मैं उनके साथ हमेशा रहता हूँ. लेकिन आजकल वो जाने किन कार्यों को निष्पादित करने में लगे हैं, मेरी समझ के बाहर है. वैसे भी उनको बोलते सुनना या पढ़ना, इतनी करीबी के बाद भी, हर बार नया समीर लाल दिखा जाता है. लगता है कि चाचा को अभी जाना ही कितना है.
जब लगातार उनको ईमेल भेजे और फोन करके उनकी प्यार और स्नेह भरी फटकार सुनने के बाद भी मैं लगा रहा कि चाचा, ईमेल तो कर दिया करो तो आज उनका यह ईमेल आया है. क्या जबाब दूँ, समझ नहीं पा रहा था इसलिए आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ, आप ही कुछ बताईये. वो ही लिख देंगे उनको.
समीर चाचा ने यह लिखा है:(छापने के लिए उनसे पूछा नहीं हैं, ज्यादा से ज्यादा प्रसाद में डांटेंगे, और क्या!)
तेजी से भागता
यह उग्र समय...
थोड़ा सा बचा..
और
बच रहा
काम कितना सारा...
सोचता हूँ
जमाने के साथ मिल जाऊँ
उसके साथ कदमताल मिलाऊँ...
ईमान तोड़ूँ अपना
या फिर
काम छोड़ूँ अपना!
कैसा है
यह द्वन्द!!
न जाने क्यूँ
बिखरा हुआ है
यह छंद!!
तुम कुछ बताओ न!!
-समीर लाल ’समीर’
समीर लाल जी
समीर लाल जी के नित नये रंग देखने मिलते हैं, उसी कड़ी में इसे जोड़ कर देखें. उनकी बहुमुखी प्रतिभा बरबस ही आकर्षित करती है कि एक व्यक्ति और रंग अनेक.
प्रणाम करता हूँ समीर जी आपको.
समीर जी से निवेदन है कि स्नेहाशीष बनाये रखिये हमेशा की तरह.
जिन्दगी यूँ गुजर जायेगी आहिस्ता आहिस्ता,
घड़ी भी पाबंदी लगायेगी आहिस्ता आहिस्ता,
बेशक, तुम मुझे याद रखोगी कुछ दिन तलक,
फिर भूल भी मुझे जाओगी आहिस्ता आहिस्ता.
*~*~*~*~*
वो नाराज होता है कि कुछ लिखते नहीं ,
कहाँ से लायें वो लफ्ज जो मिलते नहीं ,
दर्द की गर जुबां होती तो बता देते उनसे,
वो जख्म कैसे दिखा दें जो दिखते नहीं.
-संजय तिवारी ’संजू’
वाह प्रभु!! ये कैसी तेरी लीला?
चूहा बिल्ली से डरता है ,
बिल्ली कुत्ते से डरती है ,
कुत्ता आदमी से डरता है,
आदमी बीबी से डरता है,
ओर बीबी चूहे से....
वाह रे चूहे!!
तू ही है महान....
हम तेरे सामने
प्राणी हैं नादान!!!
किताबों के पन्नों को पलट के सोचता हूँ,
यूँजिन्दगी भी पलट जाये तो क्या बात है.
ख्वाबों में तो हरदम मिलता ही है वो,
आ हकीकत में लिपट जाये तो क्या बात है.
कुछ मतलब लिए ढ़ूँढ़ते हैं सब मुझको ,
आ बेमतलब निकट जाये तो क्या बात है.
यूँ ही बिखरा बिखरा सा वजूद है मेरा ,
बातों से तेरी सिमट जाये तो क्या बात है.
छीन कर तो सब ले जायेंगे दिल मेरा ,
तेरी अदा पे रपट जाये तो क्या बात है.
था मौज में झूमता वो शराबी चला,
वो हकीकत में घट जाये तो क्या बात है.
जो शरीफों की संगत में ना काटे कटे
रात संग सुरा के कट जाये तो क्या बात है.
हर कदम पर मैं खुशियाँ लुटाता चलूँ ,
यूँ ही जिन्दगी निपट जाये तो क्या बात है.
अंतरिम विमोचन:बिखरे मोती
अंतरिम विमोचन:बिखरे मोती
अंतरिम विमोचन:बिखरे मोती
बन्दर बाबू
हमारे आह्वाहन पर
सारे शहर में तिलक होली
और
आपने सुबह सुबह
फिर पानी से धो ली
हमारा निवेदन है
आप पानी बचाने के लिए सोचिये
और
सुबह सुबह
हमारे अखबार से ही पौछिये.
स्लोगन: जल ही जीवन है.
मैं तो समीर चाचा के साथ बचपन से रहा हूँ हमेशा. फिर चाहे वो उनका दफ्तर रहा हो, राजनितिक मंच या पारिवारिक काम, मैं हमेशा साथ रहा. उनका खास स्नेह मुझ पर हमेशा रहा. वो जब भी कहीं जाते, मैं उनके बाजू में जरुर रहता चाहे जबलपुर में या जबलपुर के बाहर भोपाल, दिल्ली या मुम्बई.
भारत छोड़ने के बाद भी वो जब भी यहाँ आते हैं, जबलपुर में मैं उनके साथ हमेशा रहता हूँ. लेकिन आजकल वो जाने किन कार्यों को निष्पादित करने में लगे हैं, मेरी समझ के बाहर है. वैसे भी उनको बोलते सुनना या पढ़ना, इतनी करीबी के बाद भी, हर बार नया समीर लाल दिखा जाता है. लगता है कि चाचा को अभी जाना ही कितना है.
जब लगातार उनको ईमेल भेजे और फोन करके उनकी प्यार और स्नेह भरी फटकार सुनने के बाद भी मैं लगा रहा कि चाचा, ईमेल तो कर दिया करो तो आज उनका यह ईमेल आया है. क्या जबाब दूँ, समझ नहीं पा रहा था इसलिए आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ, आप ही कुछ बताईये. वो ही लिख देंगे उनको.
समीर चाचा ने यह लिखा है:(छापने के लिए उनसे पूछा नहीं हैं, ज्यादा से ज्यादा प्रसाद में डांटेंगे, और क्या!)
तेजी से भागता
यह उग्र समय...
थोड़ा सा बचा..
और
बच रहा
काम कितना सारा...
सोचता हूँ
जमाने के साथ मिल जाऊँ
उसके साथ कदमताल मिलाऊँ...
ईमान तोड़ूँ अपना
या फिर
काम छोड़ूँ अपना!
कैसा है
यह द्वन्द!!
न जाने क्यूँ
बिखरा हुआ है
यह छंद!!
तुम कुछ बताओ न!!
-समीर लाल ’समीर’
Friday, October 23, 2009
हकीकत मे जीना आदत बन जाती है .
हकीकत मे जीना आदत बन जाती है .
खवाब कि दुनिया बेरंग नजर आती है ।
कोई इंतजार करता है जिन्दगी के लिये,
और किसी की जिन्दगी इंतजार मे गुजर जाती है ।
खवाब कि दुनिया बेरंग नजर आती है ।
कोई इंतजार करता है जिन्दगी के लिये,
और किसी की जिन्दगी इंतजार मे गुजर जाती है ।
Tuesday, September 22, 2009
लम्बी उडान
लम्बी उडान से अपने घोसले मे लौटी'
चिडिया से उसके बच्चो ने पूछा मां ’
आस्मान कितना बडा है ?
चिडिया ने बच्चो को पंखों मे समेटे’
हुए कहा सो जाओ मेरे बच्चो वो,
मेरे पंखॊ से छॊटा है ।
IT IS REALITY NOTHING IN
UNIVERSE IS BIGGER THAN
d SHELTER OF A MOTHER`S LEP........
चिडिया से उसके बच्चो ने पूछा मां ’
आस्मान कितना बडा है ?
चिडिया ने बच्चो को पंखों मे समेटे’
हुए कहा सो जाओ मेरे बच्चो वो,
मेरे पंखॊ से छॊटा है ।
IT IS REALITY NOTHING IN
UNIVERSE IS BIGGER THAN
d SHELTER OF A MOTHER`S LEP........
Wednesday, September 16, 2009
जिदंगी
जिदंगी को ऎसी कलपना समझॊ ,
रात कॊ सच सुबह कॊ सपना समझो ।
भुलाना चाह्ते हो अगर सभी जख्मो को,
तो जिंदगी मे किसी को अपना समझॊ ।
रात कॊ सच सुबह कॊ सपना समझो ।
भुलाना चाह्ते हो अगर सभी जख्मो को,
तो जिंदगी मे किसी को अपना समझॊ ।
Tuesday, September 15, 2009
कितना मुश्किल है,
दिल के र्दर्द को छुपाना कितना मुश्किल है,
टूट कर फिर मुस्कराना कितना मुश्किल है ।
किसी के साथ दूर तक जाओ ,फिर अकेले आना कितना मुश्किल है
टूट कर फिर मुस्कराना कितना मुश्किल है ।
किसी के साथ दूर तक जाओ ,फिर अकेले आना कितना मुश्किल है
Monday, September 14, 2009
उस अजनबी क यू ना इंतजार करो
उस अजनबी क यू ना इंतजार करो,
इस आशिक दिल का ना एतबार करॊ ।
रोज निकला करे किसी की याद में आसूं ,
इतना कभी किसी से प्यार ना करॊ ।
इस आशिक दिल का ना एतबार करॊ ।
रोज निकला करे किसी की याद में आसूं ,
इतना कभी किसी से प्यार ना करॊ ।
ये हकीकत है
ये हकीकत है कही खवाब तो नही,
हमे कोई याद करे ऎसी कोई बात नही ।
फिर भी ना जाने क्यू एह्सास हुआ,
जैसे किसी ने याद किया वो आप तॊ नही ।
हमे कोई याद करे ऎसी कोई बात नही ।
फिर भी ना जाने क्यू एह्सास हुआ,
जैसे किसी ने याद किया वो आप तॊ नही ।
Friday, September 11, 2009
अब उदास होना भी अच्छा लगता है
अब उदास होना भी अच्छा लगता है ,
किसी का पास होना भी अच्छा लगता है ,
मै दूर रह कर किसी कि यादो मे हू ,
यह अह्सास भी होना अच्छा लगता है ।
किसी का पास होना भी अच्छा लगता है ,
मै दूर रह कर किसी कि यादो मे हू ,
यह अह्सास भी होना अच्छा लगता है ।
Wednesday, July 29, 2009
Tuesday, July 28, 2009
कितनो की तकदीर बदलनी है |
कितनो को सही रास्ते पर लाना है|
अपनी हाथ की लकीरॊ कॊ मत देखो |
तुम्हे तो लकीरो से भी आगे जाना है |
हमारे आंसू पोछ कर वो मुस्कराते है|
अपनी इसी अदा से बो दिल को चुराते है|
हाथ उनके छू जाये हमारे चेहरे को|
इसी उम्मीद मेहम बार बार खुद को रूलाते है ।
दिल की दुकान रूक सी गयी है |
सांसे मेरी थम सी गयी है |
दिल के डाक्टर से हमे पता चला |
इस दिल मे आपकी यादे जम सी है |
कितनो को सही रास्ते पर लाना है|
अपनी हाथ की लकीरॊ कॊ मत देखो |
तुम्हे तो लकीरो से भी आगे जाना है |
हमारे आंसू पोछ कर वो मुस्कराते है|
अपनी इसी अदा से बो दिल को चुराते है|
हाथ उनके छू जाये हमारे चेहरे को|
इसी उम्मीद मेहम बार बार खुद को रूलाते है ।
दिल की दुकान रूक सी गयी है |
सांसे मेरी थम सी गयी है |
दिल के डाक्टर से हमे पता चला |
इस दिल मे आपकी यादे जम सी है |
Tuesday, June 23, 2009
समीर लाल ’उड़नतश्तरी’ जी नवगीत की पाठशाला में
अपने समीर लाल जी का गीत ’द्वारचार कर जाती गरमी’ नवगीत की पाठशाला में प्रकाशित हुआ है. गीत के बोल, उसके भाव और प्रवाह प्रभावित करता है. समय मिले, तो जरुर पढ़ें और कोई गुनगुना सके तब तो आनन्द ही आ जायेगा.
समीर लाल जी के नित नये रंग देखने मिलते हैं, उसी कड़ी में इसे जोड़ कर देखें. उनकी बहुमुखी प्रतिभा बरबस ही आकर्षित करती है कि एक व्यक्ति और रंग अनेक.
प्रणाम करता हूँ समीर जी आपको.
समीर जी से निवेदन है कि स्नेहाशीष बनाये रखिये हमेशा की तरह.
Friday, May 29, 2009
आइये आपको दिखाये कुछ नया
आइये आपको दिखाये कुछ नया ये वीडियो मुझे मेरे दोस्त ने भेजा है मै आप सब को कुछ दिखाना चाहता हू शायद आपको पसंद आये तो अपनी राय से अवगत कराये
Monday, May 18, 2009
अहसास की रचनाऐं: बिखरे मोती: समीर लाल- समीक्षा: विवेक रंजन श्रीवास्तव ’विनम्र’
पुस्तक समीक्षा
कृति: बिखरे मोती
कवि: समीर लाल ’समीर’
मूल्य: २०० रुपये, १५ US $, पृष्ठ १०४
प्रकाशक: शिवना प्रकाशन, सिहोर (म.प्र.)
कवि: समीर लाल ’समीर’
समीक्षक: विवेक रंजन श्रीवास्तव ’विनम्र’
’अहसास की रचनायें’
समीक्षक: विवेक रंजन श्रीवास्तव ’विनम्र’
"मुझको ज्ञान नहीं है बिल्कुल छंदो का,
बस मन में अनुराग लिए फिरता हूँ मैं."
ये पंक्तियाँ हैं, सद्यः प्रकाशित काव्य संकलन ’बिखरे मोती’ में प्रकाशित ’आस लिए फिरता हूँ मैं’ से. समीर लाल जो हिन्दी ब्लॉग जगत में ’उड़न तश्तरी’ नाम से सुविख्यात हैं. एक लब्ध प्रतिष्ठित ब्लॉगर, कवि, विचारक एवं चिंतक हैं. समाज, देश के सारोकार उनकी रचनाओं में स्पष्ट झलकते हैं. अपनी ७१ रचनाओं, जिनमें गीत, गज़लें, छंद मुक्त कवितायें, मुक्तक एवं क्षणिकायें समाहित हैं, के रुप में उन्होंने अपना पहला काव्य संग्रह ’बिखरे मोती’ हिन्दी पाठकों हेतु पुस्तकाकार प्रस्तुत किया है.
कम्प्यूटर की दुनियां के वर्चुएल जगह की तात्कालिक, समूची दुनियां में पहुँच की सुविधा के बावजूद, प्रकाशित पुस्तकों को पढ़ने का आनन्द एवं महत्व अलग ही है. इस दृष्टि से ’बिखरे मोती’ का प्रकाशन हिन्दी साहित्यजगत हेतु उपलब्धि है.
अपने अहसास को शब्दों का रुप देकर हर रोज नई ब्लॉग पोस्ट लिखने वाले समीर जी जब लिखते हैं:
’कुटिल हुई कौटिल्य नीतियाँ,
राज कर रही हैं विष कन्या’
या फिर
’चल उठा तलवार फिर से
ढ़ूंढ़ फिर से कुछ वजह,
इक इमारत धर्म के ही
नाम ढ़ा दी बेवजह’
तब विदेश में रहते हुये भी समीर का मन भारत की राजनीति, यहाँ धर्म के नाम पर होते दंगों फसादों से अपनी पीड़ा, की आहत अभिव्यक्ति करता लगता है.
वे लिखते हैं:
’लिखता हूँ अब बस लिखने को,
लिखने जैसी बात नहीं है.'
या फिर
’हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई,
चिड़ियों ने यह जात न पाई.’
या फिर
’नाम जिसका है खुदा, भगवान भी तो है वही,
भेद करते हो भला क्यूँ, इस जरा से नाम से.’
धर्म के पाखण्ड पर यह समीर की सशक्त कलम के सक्षम प्रहार हैं.
इसी तरह आरक्षण की कुत्सित नीति पर वे लिखते नजर आते हैं:
’दलितों का उद्धार जरुरी, कब ये बात नहीं मानी,
आरक्षण की रीति गलत है, इसमें गरज तुम्हारी है’
एक सर्वथा अलग अंदाज में जब वे मन से, अपने आप से बातें करते हैं, वो लिखते हैं:
’आपका नाम बस लिख दिया,
लीजिये शायरी हो गई.’
कुल मिला कर ’बिखरे मोती’ की कई कई मालायें समीर के जेहन में हैं. उनकी रचनाओं का हर मोती एक दूसरे से बढ़ कर है. प्रत्येक अपने आप में परिपूर्ण, अपनी ही चमक लिये, अपना ही संदेशा लिये, अद्भुत!
सारी रचनायें समग्र रुप से कहें तो अहसास की रचनायें हैं, जिन्हें संप्रेषणीयता के उन्मान पर पहुँच कर समीर ने सार्वजनिक कर हम सब से बांटा है.
पुस्तक पठनीय, पुनर्पठनीय एवं संग्रहणीय है.
बधाई एवं शुभकामनाऐं.
- विवेक रंजन श्रीवास्तव ’विनम्र’
जबलपुर, म.प्र.
ब्लॉग: http://vivekkevyang.blogspot.com/
कृति: बिखरे मोती
कवि: समीर लाल ’समीर’
मूल्य: २०० रुपये, १५ US $, पृष्ठ १०४
प्रकाशक: शिवना प्रकाशन, सिहोर (म.प्र.)
कवि: समीर लाल ’समीर’
समीर लाल |
समीक्षक: विवेक रंजन श्रीवास्तव ’विनम्र’
विवेक रंजन श्रीवास्तव ’विनम्र’ |
’अहसास की रचनायें’
समीक्षक: विवेक रंजन श्रीवास्तव ’विनम्र’
"मुझको ज्ञान नहीं है बिल्कुल छंदो का,
बस मन में अनुराग लिए फिरता हूँ मैं."
ये पंक्तियाँ हैं, सद्यः प्रकाशित काव्य संकलन ’बिखरे मोती’ में प्रकाशित ’आस लिए फिरता हूँ मैं’ से. समीर लाल जो हिन्दी ब्लॉग जगत में ’उड़न तश्तरी’ नाम से सुविख्यात हैं. एक लब्ध प्रतिष्ठित ब्लॉगर, कवि, विचारक एवं चिंतक हैं. समाज, देश के सारोकार उनकी रचनाओं में स्पष्ट झलकते हैं. अपनी ७१ रचनाओं, जिनमें गीत, गज़लें, छंद मुक्त कवितायें, मुक्तक एवं क्षणिकायें समाहित हैं, के रुप में उन्होंने अपना पहला काव्य संग्रह ’बिखरे मोती’ हिन्दी पाठकों हेतु पुस्तकाकार प्रस्तुत किया है.
कम्प्यूटर की दुनियां के वर्चुएल जगह की तात्कालिक, समूची दुनियां में पहुँच की सुविधा के बावजूद, प्रकाशित पुस्तकों को पढ़ने का आनन्द एवं महत्व अलग ही है. इस दृष्टि से ’बिखरे मोती’ का प्रकाशन हिन्दी साहित्यजगत हेतु उपलब्धि है.
अपने अहसास को शब्दों का रुप देकर हर रोज नई ब्लॉग पोस्ट लिखने वाले समीर जी जब लिखते हैं:
’कुटिल हुई कौटिल्य नीतियाँ,
राज कर रही हैं विष कन्या’
या फिर
’चल उठा तलवार फिर से
ढ़ूंढ़ फिर से कुछ वजह,
इक इमारत धर्म के ही
नाम ढ़ा दी बेवजह’
तब विदेश में रहते हुये भी समीर का मन भारत की राजनीति, यहाँ धर्म के नाम पर होते दंगों फसादों से अपनी पीड़ा, की आहत अभिव्यक्ति करता लगता है.
वे लिखते हैं:
’लिखता हूँ अब बस लिखने को,
लिखने जैसी बात नहीं है.'
या फिर
’हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई,
चिड़ियों ने यह जात न पाई.’
या फिर
’नाम जिसका है खुदा, भगवान भी तो है वही,
भेद करते हो भला क्यूँ, इस जरा से नाम से.’
धर्म के पाखण्ड पर यह समीर की सशक्त कलम के सक्षम प्रहार हैं.
इसी तरह आरक्षण की कुत्सित नीति पर वे लिखते नजर आते हैं:
’दलितों का उद्धार जरुरी, कब ये बात नहीं मानी,
आरक्षण की रीति गलत है, इसमें गरज तुम्हारी है’
एक सर्वथा अलग अंदाज में जब वे मन से, अपने आप से बातें करते हैं, वो लिखते हैं:
’आपका नाम बस लिख दिया,
लीजिये शायरी हो गई.’
कुल मिला कर ’बिखरे मोती’ की कई कई मालायें समीर के जेहन में हैं. उनकी रचनाओं का हर मोती एक दूसरे से बढ़ कर है. प्रत्येक अपने आप में परिपूर्ण, अपनी ही चमक लिये, अपना ही संदेशा लिये, अद्भुत!
सारी रचनायें समग्र रुप से कहें तो अहसास की रचनायें हैं, जिन्हें संप्रेषणीयता के उन्मान पर पहुँच कर समीर ने सार्वजनिक कर हम सब से बांटा है.
पुस्तक पठनीय, पुनर्पठनीय एवं संग्रहणीय है.
बधाई एवं शुभकामनाऐं.
- विवेक रंजन श्रीवास्तव ’विनम्र’
जबलपुर, म.प्र.
ब्लॉग: http://vivekkevyang.blogspot.com/
Sunday, May 17, 2009
Tuesday, May 12, 2009
आपकी जरूरत...
Wednesday, April 29, 2009
जिन्दगी यूँ गुजर जायेगी आहिस्ता आहिस्ता,
घड़ी भी पाबंदी लगायेगी आहिस्ता आहिस्ता,
बेशक, तुम मुझे याद रखोगी कुछ दिन तलक,
फिर भूल भी मुझे जाओगी आहिस्ता आहिस्ता.
*~*~*~*~*
वो नाराज होता है कि कुछ लिखते नहीं ,
कहाँ से लायें वो लफ्ज जो मिलते नहीं ,
दर्द की गर जुबां होती तो बता देते उनसे,
वो जख्म कैसे दिखा दें जो दिखते नहीं.
-संजय तिवारी ’संजू’
Monday, April 27, 2009
अजब गजब तेरी माया..
वाह प्रभु!! ये कैसी तेरी लीला?
चूहा बिल्ली से डरता है ,
बिल्ली कुत्ते से डरती है ,
कुत्ता आदमी से डरता है,
आदमी बीबी से डरता है,
ओर बीबी चूहे से....
वाह रे चूहे!!
तू ही है महान....
हम तेरे सामने
प्राणी हैं नादान!!!
Wednesday, April 22, 2009
किताबों के पन्नों को पलट के सोचता हूँ,
यूँजिन्दगी भी पलट जाये तो क्या बात है.
ख्वाबों में तो हरदम मिलता ही है वो,
आ हकीकत में लिपट जाये तो क्या बात है.
कुछ मतलब लिए ढ़ूँढ़ते हैं सब मुझको ,
आ बेमतलब निकट जाये तो क्या बात है.
यूँ ही बिखरा बिखरा सा वजूद है मेरा ,
बातों से तेरी सिमट जाये तो क्या बात है.
छीन कर तो सब ले जायेंगे दिल मेरा ,
तेरी अदा पे रपट जाये तो क्या बात है.
था मौज में झूमता वो शराबी चला,
वो हकीकत में घट जाये तो क्या बात है.
जो शरीफों की संगत में ना काटे कटे
रात संग सुरा के कट जाये तो क्या बात है.
हर कदम पर मैं खुशियाँ लुटाता चलूँ ,
यूँ ही जिन्दगी निपट जाये तो क्या बात है.
Thursday, April 16, 2009
तुम गये कुछ दूर
तुम गये कुछ दूर मुझसे,मन उदास सा हो गया ,
याद आना दिल दुखाना,कितना खास सा हो गया ,
रहा सुनता रोज था,चला जाऊँगा मै फिर एक दिन,
यूँ छोड़ कर तेरा जाना, अनायास सा हो गया ,
न आने को जाते, तो बहला लेते हमीं खुद को
समझ लेते अब समीर इक आस सा हो गया.
ताकता आसूं बहाता मैं रह पाऊँगा कब तलक,
नाम तेरा जब भी आया, बदहवास सा हो गया.
याद आना दिल दुखाना,कितना खास सा हो गया ,
रहा सुनता रोज था,चला जाऊँगा मै फिर एक दिन,
यूँ छोड़ कर तेरा जाना, अनायास सा हो गया ,
न आने को जाते, तो बहला लेते हमीं खुद को
समझ लेते अब समीर इक आस सा हो गया.
ताकता आसूं बहाता मैं रह पाऊँगा कब तलक,
नाम तेरा जब भी आया, बदहवास सा हो गया.
Wednesday, April 8, 2009
भाई समीर लाल जी द्वारा बिखरे मोती के अंतरिम विमोचन की रपट
दो दिन बीते. न कोई कमेंट, न अधिक ब्लॉग विचरण. कोई ब्लॉग वैराग्य जैसी बात भी नहीं बस शनिवार को लंदन रुकते हुए कनाडा वापसी की तैयारी है तो बस!! समयाभाव सा हो लिया है. इस बीच मेरी पहली पुस्तक ’बिखरे मोती’ भी पंकज सुबीर जी और रमेश हटीला के अथक परिश्रम के बाद शिवना प्रकाशन से छप कर आ ही गई. छबि मिडिया याने बैगाणी बंधुओं ने कवर सज्जा भी खूब की.
अपनी पहली पुस्तक यूँ भी किसी लेखक के लिए एक अद्भुत घटना होती है और तिस पर से यह रोक कि परम्परानुसार बिना विमोचन आप इसे मित्रों को दे भी नहीं सकते. मन को मना भी लूँ तो हाथ को कैसे रोकूँ जो कुद कुद कर परिवार और मित्रों को पुस्तक पढ़वाने और वाह वाही लूटने को लालायित था.
याद आया कि मैने अपने पुत्र पर रोक लगाई थी कि बिना सगाई वधु के साथ घूमने नहीं जाओगे और सगाई हमारे आये बिना करोगे नहीं. बेटे ने तो़ड़ निकाली कि रोका का फन्कशन कर लेता हूँ फिर सगाई जब आप कनाडा से आ जायें तब. क्या अब घूम सकता हूँ? बेटा बाप से बढ़कर निकला और हम चुप. बस उसी को याद करते सुबीर जी को फोन लगाया. विमोचन कनाडा में हमारे गुरुदेव कम मार्गदर्शक कम मित्र कम अग्रज राकेश खण्डॆलवाल जी से ही करवाना है और इस बात पर मैं अडिग हूँ तो फिर पुस्तक कैसे बाटूँ?
अनुभवी पंकज सुबीर जी ने सोच विचार कर सलाह दी कि रोका टाइप एक अंतरिम विमोचन कर लिजिये और बांट दिजिये. मुख्य विमोचन कनाडा में कर लिजियेगा. बेटे को रोका जमा था और हमें ये.
आनन फानन, प्रमेन्द्र महाशक्ति इलाहाबाद से आ ही रहे थे, एक ब्लॉगर मीट रखी गई और वरिष्ट साहित्यकार आचार्य संजीव सलिल जी के कर कमलों से अन्तरिम विमोचन हुआ.
कार्यक्रम में आचार्य संजीव सलिल, प्रमेन्द्र, तारा चन्द्र, डूबे जी कार्टूनिस्ट, गिरिश बिल्लोर जी, संजय तिवारी संजू, बवाल, विवेक रंजन श्रीवास्तव, आनन्द कृष्ण, महेन्द्र मिश्रा और मैं उपस्थित था. संजीव जी ने विमोचन किया और सभी ने किताब से एक एक रचना पढ़ी. शिवना प्रकाशन के भाई पंकज सुबीर, रमेश हटीला जी, छबी मिडिया के बैगाणी बंधुओं का विशेष आभार व्यक्त किया गया.
इस अवसर पर लिए गये कुछ चित्र और विस्तृत रिपोर्ट महेन्द्र मिश्रा जी प्रस्तुत कर ही चुके हैं.
वैसे बवाल की कव्वाली, विवेक जी और गिरिश बिल्लोरे जी कविता ने कार्यक्रम का समा बांध दिया.
अपनी पहली पुस्तक यूँ भी किसी लेखक के लिए एक अद्भुत घटना होती है और तिस पर से यह रोक कि परम्परानुसार बिना विमोचन आप इसे मित्रों को दे भी नहीं सकते. मन को मना भी लूँ तो हाथ को कैसे रोकूँ जो कुद कुद कर परिवार और मित्रों को पुस्तक पढ़वाने और वाह वाही लूटने को लालायित था.
याद आया कि मैने अपने पुत्र पर रोक लगाई थी कि बिना सगाई वधु के साथ घूमने नहीं जाओगे और सगाई हमारे आये बिना करोगे नहीं. बेटे ने तो़ड़ निकाली कि रोका का फन्कशन कर लेता हूँ फिर सगाई जब आप कनाडा से आ जायें तब. क्या अब घूम सकता हूँ? बेटा बाप से बढ़कर निकला और हम चुप. बस उसी को याद करते सुबीर जी को फोन लगाया. विमोचन कनाडा में हमारे गुरुदेव कम मार्गदर्शक कम मित्र कम अग्रज राकेश खण्डॆलवाल जी से ही करवाना है और इस बात पर मैं अडिग हूँ तो फिर पुस्तक कैसे बाटूँ?
अनुभवी पंकज सुबीर जी ने सोच विचार कर सलाह दी कि रोका टाइप एक अंतरिम विमोचन कर लिजिये और बांट दिजिये. मुख्य विमोचन कनाडा में कर लिजियेगा. बेटे को रोका जमा था और हमें ये.
आनन फानन, प्रमेन्द्र महाशक्ति इलाहाबाद से आ ही रहे थे, एक ब्लॉगर मीट रखी गई और वरिष्ट साहित्यकार आचार्य संजीव सलिल जी के कर कमलों से अन्तरिम विमोचन हुआ.
कार्यक्रम में आचार्य संजीव सलिल, प्रमेन्द्र, तारा चन्द्र, डूबे जी कार्टूनिस्ट, गिरिश बिल्लोर जी, संजय तिवारी संजू, बवाल, विवेक रंजन श्रीवास्तव, आनन्द कृष्ण, महेन्द्र मिश्रा और मैं उपस्थित था. संजीव जी ने विमोचन किया और सभी ने किताब से एक एक रचना पढ़ी. शिवना प्रकाशन के भाई पंकज सुबीर, रमेश हटीला जी, छबी मिडिया के बैगाणी बंधुओं का विशेष आभार व्यक्त किया गया.
इस अवसर पर लिए गये कुछ चित्र और विस्तृत रिपोर्ट महेन्द्र मिश्रा जी प्रस्तुत कर ही चुके हैं.
वैसे बवाल की कव्वाली, विवेक जी और गिरिश बिल्लोरे जी कविता ने कार्यक्रम का समा बांध दिया.
Friday, March 27, 2009
Wednesday, March 25, 2009
Friday, March 20, 2009
Wednesday, March 18, 2009
समीर लाल ’उड़न तश्तरी’ का रात्रि भोज निमंत्रण: एक अलग सी बात है!!
होली के अगले दिन समीर लाल जी ने बम्बई से जबलपुर अपनी ससुराल पधारे नामचीन ब्लॉगर भाई विजय शंकर चतुर्वेदी जो आजाद लब के नाम का ब्लॉग चलाते हैं, के सम्मान में रात्रि भोज का आयोजन किया.
जल्दी जल्दी में जिन जिन ब्लॉगर्स को सूचित कर पाये, किया गया और १२ तारीख की शाम सब एकत्र हुए समीर लाल जी के पसंदीदा हॉल ’द एगज्यूकूटिव हाल’ जो कि जबलपुर के नामी होटल सत्य अशोका में है.
खुशी का मौका था. एक तो विजय शंकर जी जबलपुर आये हुए थे और दूसरा विजय शंकर जी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी. समीर लाल जी की दावतें यूँ भी बहुत शानदार होती हैं और उस पर से यह खुशी का मौका. पूरी मौज में दावत चली.
विजय जी ने सबको मिठाई खिलाई. समीर जी ने विजय शंकर जी की आ रही किताब की कविता पढ़कर सुनाई अपने निराले अंदाज में और जब उन्होंने अपना गीत पूरे तरर्नुम में सुनाया तो सभी आमंत्रित मंत्रमुग्ध से वाह वाह कर उठे. समीर जी ने अपने उदबोधन में सभी उपस्थित आमंत्रितों का, जिसमें बवाल हिन्दवी, मैं याने संजय तिवारी ’संजु’, सुनील शुक्ला जी, विवेक रंजन श्रीवास्तव, डूबे जी का विस्तृत परिचय विजय शंकर जी करवाया और विजय जी के अभिनव व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला.
बवाल हिन्दवी ने अपने सुरों और कव्वाली से महफिल को सजा दिया और विजय जी को जबलपुर की एक अलग सी याद गठरी में बाँध कर दी. विवेक रंजन श्रीवास्तव जी ने अपना नया व्यंग्य संग्रह सस्नेह विजय जी को भेंट किया और डूबे जी ने समीर लाल, विजय शंकर जी और विवेक रंजन जी का कार्टून त्वरित बना कर सबको दाँतों तले उँगली दबवा दी. सुनील शुक्ला जी ने जब तलत महमूद और मुकेश के गीत सुनाये तो महफिल झूम उठी.
कुल मिला कर सब ने वाह वाह करते ही शाम बिताई.
मिठाई खाओ!!
डूबे जी की कलाकारी
बहुत आभार समीर लाल जी का और आभार आपका विजय शंकर चतुर्वेदी जी जो आप अपने साले संग पधारे और आयोजन की शान बढ़ाई.
समीर लाल जी एक गज़ल पेश कर रहा हूँ जो उन्होंने इस महफिल में भी सुनाई थी:
समीर लाल
सुना है मंद है बाज़ार, अबकी बार होली में,
सुरा ने ख़ुब किया व्यापार, अबकी बार होली में.
सियासी चाल के क़िस्से, कभी इसके कभी उसके
ना छापे जो अगर अख़बार, अबकी बार होली में.
जिता कर लाए थे जिसको, बदलने मुल्क की सूरत
हुआ वो किस कदर लाचार, अबकी बार होली में.
रची हैं साज़िशें जिसने, पड़ोसी ही तो है अपना
हुआ घोषित वही गद्दार, अबकी बार होली में.
अमन ख़ुद यूँ न लौटेगा, जो तुम ख़ामोश ही बैठे
बदल लो जी, ज़रा व्यवहार, अबकी बार होली में.
ख़ुदा का वास्ता उसको, जो उनकी शान रखता हो
हुए पर सब वहाँ मक्कार, अबकी बार होली में.
सजी हैं महफ़िलें उनकी, के जिनके हक़ हुकूमत हैं
औ’ कुछ का बिक गया घरबार, अबकी बार होली में.
दिया है दर्द जिसने भी, वही आ कर दवा देगा
यही है कारगर उपचार, अबकी बार होली में.
फंसें हैं किस बवंडर में, भरोसा ख़ुद से उठ बैठा
चलो हम कर लें थोड़ा प्यार, अबकी बार होली में.
कहाँ तक रंग को मुद्दा बना कर रार ठानोगे ?
चलो जाने भी दो ना यार, अबकी बार होली में.
`समीर’ कह रहा तुमसे, ज़रा सा होश में आओ
दिखा दो तुम भी हो ख़ुद्दार, अबकी बार होली में.
-समीर लाल ’समीर’
जल्दी जल्दी में जिन जिन ब्लॉगर्स को सूचित कर पाये, किया गया और १२ तारीख की शाम सब एकत्र हुए समीर लाल जी के पसंदीदा हॉल ’द एगज्यूकूटिव हाल’ जो कि जबलपुर के नामी होटल सत्य अशोका में है.
खुशी का मौका था. एक तो विजय शंकर जी जबलपुर आये हुए थे और दूसरा विजय शंकर जी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी. समीर लाल जी की दावतें यूँ भी बहुत शानदार होती हैं और उस पर से यह खुशी का मौका. पूरी मौज में दावत चली.
विजय जी ने सबको मिठाई खिलाई. समीर जी ने विजय शंकर जी की आ रही किताब की कविता पढ़कर सुनाई अपने निराले अंदाज में और जब उन्होंने अपना गीत पूरे तरर्नुम में सुनाया तो सभी आमंत्रित मंत्रमुग्ध से वाह वाह कर उठे. समीर जी ने अपने उदबोधन में सभी उपस्थित आमंत्रितों का, जिसमें बवाल हिन्दवी, मैं याने संजय तिवारी ’संजु’, सुनील शुक्ला जी, विवेक रंजन श्रीवास्तव, डूबे जी का विस्तृत परिचय विजय शंकर जी करवाया और विजय जी के अभिनव व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला.
बवाल हिन्दवी ने अपने सुरों और कव्वाली से महफिल को सजा दिया और विजय जी को जबलपुर की एक अलग सी याद गठरी में बाँध कर दी. विवेक रंजन श्रीवास्तव जी ने अपना नया व्यंग्य संग्रह सस्नेह विजय जी को भेंट किया और डूबे जी ने समीर लाल, विजय शंकर जी और विवेक रंजन जी का कार्टून त्वरित बना कर सबको दाँतों तले उँगली दबवा दी. सुनील शुक्ला जी ने जब तलत महमूद और मुकेश के गीत सुनाये तो महफिल झूम उठी.
कुल मिला कर सब ने वाह वाह करते ही शाम बिताई.
बहुत आभार समीर लाल जी का और आभार आपका विजय शंकर चतुर्वेदी जी जो आप अपने साले संग पधारे और आयोजन की शान बढ़ाई.
समीर लाल जी एक गज़ल पेश कर रहा हूँ जो उन्होंने इस महफिल में भी सुनाई थी:
सुना है मंद है बाज़ार, अबकी बार होली में,
सुरा ने ख़ुब किया व्यापार, अबकी बार होली में.
सियासी चाल के क़िस्से, कभी इसके कभी उसके
ना छापे जो अगर अख़बार, अबकी बार होली में.
जिता कर लाए थे जिसको, बदलने मुल्क की सूरत
हुआ वो किस कदर लाचार, अबकी बार होली में.
रची हैं साज़िशें जिसने, पड़ोसी ही तो है अपना
हुआ घोषित वही गद्दार, अबकी बार होली में.
अमन ख़ुद यूँ न लौटेगा, जो तुम ख़ामोश ही बैठे
बदल लो जी, ज़रा व्यवहार, अबकी बार होली में.
ख़ुदा का वास्ता उसको, जो उनकी शान रखता हो
हुए पर सब वहाँ मक्कार, अबकी बार होली में.
सजी हैं महफ़िलें उनकी, के जिनके हक़ हुकूमत हैं
औ’ कुछ का बिक गया घरबार, अबकी बार होली में.
दिया है दर्द जिसने भी, वही आ कर दवा देगा
यही है कारगर उपचार, अबकी बार होली में.
फंसें हैं किस बवंडर में, भरोसा ख़ुद से उठ बैठा
चलो हम कर लें थोड़ा प्यार, अबकी बार होली में.
कहाँ तक रंग को मुद्दा बना कर रार ठानोगे ?
चलो जाने भी दो ना यार, अबकी बार होली में.
`समीर’ कह रहा तुमसे, ज़रा सा होश में आओ
दिखा दो तुम भी हो ख़ुद्दार, अबकी बार होली में.
-समीर लाल ’समीर’
Monday, March 16, 2009
हमारे आह्वाहन पर
सारे शहर में तिलक होली
और
आपने सुबह सुबह
फिर पानी से धो ली
हमारा निवेदन है
आप पानी बचाने के लिए सोचिये
और
सुबह सुबह
हमारे अखबार से ही पौछिये.
स्लोगन: जल ही जीवन है.
Tuesday, March 3, 2009
फिर ना पुकारो
फिर ना पुकारो मुझे तुम उन्ही बहारो मे,
आके कही खो ना जाऊ उन हसीं नजारो मे,,
यु तो तुम ने हॆ तड्फाया रात भर अधियारे मे,
अब तो जाके सो जाने दो दिन के उजियारो मे,,
आके कही खो ना जाऊ उन हसीं नजारो मे,,
यु तो तुम ने हॆ तड्फाया रात भर अधियारे मे,
अब तो जाके सो जाने दो दिन के उजियारो मे,,
Monday, February 23, 2009
Tuesday, February 17, 2009
जबलपुर: हाईटेक होते साहित्यकार: एक रिपोर्ट, कुछ तस्वीरें
विगत दिवस ’हिन्दी साहित्य संगम’ के तत्वाधान में श्री विजय तिवारी ’किसलय’ जी का जन्म दिवस शहर के वरिष्ट साहित्यकारों, चिट्ठाकारों, कवियों एवं गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति में मनाया गया. इस मौके पर सभी ने विजय तिवारी ’किसलय’ जी को जन्म दिवस की बधाई दी एवं उनके दीर्घायु होने की कामना की. संभाषणों एवं कविताओं का दौर चला.
इस अवसर पर उपस्थित वरिष्ट चिट्ठाकार समीर लाल, उड़न तश्तरी जी ने अपने उदबोधन से सबका ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने चिट्ठों और चिट्ठाकारी के लाभ, हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान पर प्रकाश डाला एवं उपस्थित सभी साहित्यकारों को चिट्ठाविश्व में आमंत्रित किया एवं इस हेतु किसी भी मदद के लिए अपने एवं अन्य चिट्ठाकारों के योगदान की पेशकश की. अपने उदबोधन के समापन में उन्होंने अपना मधुर गीत प्रस्तुत करके श्रोताओं को मंत्र मुग्ध किया.
प्रेम फरुख्खाबादी, शैली खत्री, गिरिश बिल्लोरे, डॉ गार्गी शंकर मिश्र ’मराल’, नलिन सूर्यवंशी ’ताज’, विजय नेमा, श्री ओंकार ठाकुर, आचार्य भगवत दुबे, आचार्य हरि शंकर दुबे, श्री विजय तिवारी ’किसलय’, दीपक आदि ने जहाँ एक ओर अपनी कविताओं और गज़लों का समा बाँधा, वहीं बवाल ने अपने अनोखे अंदाज में गीत प्रस्तुत किये. प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट राजेश दुबे ’डूबे जी’ ने कागज पेन्सिल के आभाव में हवा में ही कार्टून खींचने की पेशकश की. :)
कार्यक्रम का संचालन जाने माने मंच संचालक श्री राजेश पाठक ने किया.
अंत में स्वादिष्ट भोजन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ.
इसी अवसर की कुछ तस्वीरें:
से हिन्दी साहित्य संगम
से हिन्दी साहित्य संगम
से हिन्दी साहित्य संगम
से हिन्दी साहित्य संगम
से हिन्दी साहित्य संगम
चित्र साभार: संजय तिवारी ’संजू’
इस अवसर पर उपस्थित वरिष्ट चिट्ठाकार समीर लाल, उड़न तश्तरी जी ने अपने उदबोधन से सबका ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने चिट्ठों और चिट्ठाकारी के लाभ, हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान पर प्रकाश डाला एवं उपस्थित सभी साहित्यकारों को चिट्ठाविश्व में आमंत्रित किया एवं इस हेतु किसी भी मदद के लिए अपने एवं अन्य चिट्ठाकारों के योगदान की पेशकश की. अपने उदबोधन के समापन में उन्होंने अपना मधुर गीत प्रस्तुत करके श्रोताओं को मंत्र मुग्ध किया.
प्रेम फरुख्खाबादी, शैली खत्री, गिरिश बिल्लोरे, डॉ गार्गी शंकर मिश्र ’मराल’, नलिन सूर्यवंशी ’ताज’, विजय नेमा, श्री ओंकार ठाकुर, आचार्य भगवत दुबे, आचार्य हरि शंकर दुबे, श्री विजय तिवारी ’किसलय’, दीपक आदि ने जहाँ एक ओर अपनी कविताओं और गज़लों का समा बाँधा, वहीं बवाल ने अपने अनोखे अंदाज में गीत प्रस्तुत किये. प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट राजेश दुबे ’डूबे जी’ ने कागज पेन्सिल के आभाव में हवा में ही कार्टून खींचने की पेशकश की. :)
कार्यक्रम का संचालन जाने माने मंच संचालक श्री राजेश पाठक ने किया.
अंत में स्वादिष्ट भोजन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ.
इसी अवसर की कुछ तस्वीरें:
चित्र साभार: संजय तिवारी ’संजू’
Monday, February 16, 2009
जिन्दाबाद-मुर्दाबाद
नोट: यह मेरी प्रथम कहानी लेखन का प्रयास है, कृप्या अपनी प्रतिक्रिया दें और मुझे क्या सुधार करना चाहिये, सलाह दें.
अभी दिन ही कितने बीते हैं जब उन्होंने साथ जीने मरने की कसमें खाई थीं. उस चाँद के नीचे, नदी किनारे बैठे, सात जन्मों तक एक दूसरे का साथ निभाने का वादा किया था. उसके तन से आती मादक खुशबू में नरेश कैसे नशे में झूम उठता था. उसका सर्वस्व वो, उसकी और सिर्फ उसकी आरती.
कितने उत्साह से दोनों शादी के बन्धन में बँधे और फिर डूब गये अपनी ही एक अनोखी दुनिया में. समय के साथ साथ नरेश अपने कैरियर में और आरती, इस घर के आँगन को किलकारियों से भर देने के लिए आने वाले नये सदस्य के आगमन की तैयारियों में जुट गई.
नरेश अपने कार्यक्षेत्र में तरक्की करता गया और आगे बढ़ने का नशा ऐसा सर चढ़कर बोला कि उसे कुछ ख्याल ही न रहा कि वो सिर्फ अपना ही नहीं, अपनी पत्नी आरती का भी है और उसकी जरुरत और किसी से ज्यादा उसकी आने वाली संतान को है. दिन भर काम में व्यस्त, शाम पार्टियों में और फिर देर रात शराब के नशे में धुत्त, घर लौटना और आते ही सो जाना, यही उसकी दिनचर्या हो गई. कब रश्मि पैदा हुई और कब तीन माह की हो गई, उसे पता ही नहीं लगा.
अनायास ही आई ये दूरियाँ आरती को चुभने लगीं. ऐसा नहीं कि आरती उसकी प्रगति की राहों में रोड़ा बनना चाहती हो या उसे नरेश का अपने कैरियर में आगे बढ़ना अच्छा न लगता हो मगर इन सबके बाद, रोज रात देर से शराब के नशे में चूर घर लौटना उसे नाकाबिले बरदाश्त गुजरता था. जब लाख समझाने पर नरेश न माना और बात बरदाश्त के बाहर हो गई, तो एक रात उसने नरेश के लौटने पर ऐसी बात कही कि नरेश के होश ही उड़ गये.
आरती ने साफ शब्दों में कह दिया कि या तो तुम शराब का संग कर लो या मेरा. हम दोनों एक साथ तुम्हारी संगनी बन कर नहीं रह सकतीं. आज तुम्हें हम दोनों में से एक को चुनना होगा अन्यथा मैं अपनी बेटी के साथ यह घर हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूँ.
नरेश के पैरों तले तो मानो जमीन ही खिसक गई.एकाएक उसकी नजर रश्मि के मासूम चेहरे पर पड़ी. वो एकटक बस नरेश को प्रश्नात्मक दृष्टि से निहारे जा रही थी मानो कह रही हो पापा, अगर आपको मम्मी छोड़ कर चली गई तो मुझे भी भूल जाना, मुझे तो मम्मी के साथ ही जाना होगा. सोचो पापा, मम्मी को तो कोई न कोई बेहतर जीवनसाथी फिर भी मिल जायेगा मगर मेरा क्या होगा? आपका क्या होगा?
मासूम का चेहरा देख नरेश की आँख से अपने आप ही आँसू बह निकले और उसने खिड़की से बाहर देखती अपनी पत्नि आरती के कँधे पर हाथ रखते हुए कहा: आरती, तुम्हें मालूम है आज कौन सा दिन है? आरती आश्चर्य से उसका मूँह देखने लग गई. नरेश जारी रहा; आज प्रमियों का दिवस है-वेलेन्टाईन डे और आज मैं तुम्हें एक तोहफा देना चाहता हूँ: आज से मैं शराब को कभी हाथ नहीं लगाऊँगा.
आरती को मानो सर्वस्व मिल गया इस वेलेन्टाईन डे के नायाब तोहफे के रुप में. वो पलट कर नरेश के गले लग गई और फूट फूट कर रोने लगी. ये खुशी के आंसू थे. रश्मि भी दोनों पैर उछाल उछाल कर किलकारी मारने लगी; मानो कह रही हो: मेरे मम्मी पापा जिन्दाबाद-वेलेन्टाईन डे जिन्दाबाद-शराब मुर्दाबाद!!
शराब घर बर्बाद कर देती है.
अभी दिन ही कितने बीते हैं जब उन्होंने साथ जीने मरने की कसमें खाई थीं. उस चाँद के नीचे, नदी किनारे बैठे, सात जन्मों तक एक दूसरे का साथ निभाने का वादा किया था. उसके तन से आती मादक खुशबू में नरेश कैसे नशे में झूम उठता था. उसका सर्वस्व वो, उसकी और सिर्फ उसकी आरती.
कितने उत्साह से दोनों शादी के बन्धन में बँधे और फिर डूब गये अपनी ही एक अनोखी दुनिया में. समय के साथ साथ नरेश अपने कैरियर में और आरती, इस घर के आँगन को किलकारियों से भर देने के लिए आने वाले नये सदस्य के आगमन की तैयारियों में जुट गई.
नरेश अपने कार्यक्षेत्र में तरक्की करता गया और आगे बढ़ने का नशा ऐसा सर चढ़कर बोला कि उसे कुछ ख्याल ही न रहा कि वो सिर्फ अपना ही नहीं, अपनी पत्नी आरती का भी है और उसकी जरुरत और किसी से ज्यादा उसकी आने वाली संतान को है. दिन भर काम में व्यस्त, शाम पार्टियों में और फिर देर रात शराब के नशे में धुत्त, घर लौटना और आते ही सो जाना, यही उसकी दिनचर्या हो गई. कब रश्मि पैदा हुई और कब तीन माह की हो गई, उसे पता ही नहीं लगा.
अनायास ही आई ये दूरियाँ आरती को चुभने लगीं. ऐसा नहीं कि आरती उसकी प्रगति की राहों में रोड़ा बनना चाहती हो या उसे नरेश का अपने कैरियर में आगे बढ़ना अच्छा न लगता हो मगर इन सबके बाद, रोज रात देर से शराब के नशे में चूर घर लौटना उसे नाकाबिले बरदाश्त गुजरता था. जब लाख समझाने पर नरेश न माना और बात बरदाश्त के बाहर हो गई, तो एक रात उसने नरेश के लौटने पर ऐसी बात कही कि नरेश के होश ही उड़ गये.
आरती ने साफ शब्दों में कह दिया कि या तो तुम शराब का संग कर लो या मेरा. हम दोनों एक साथ तुम्हारी संगनी बन कर नहीं रह सकतीं. आज तुम्हें हम दोनों में से एक को चुनना होगा अन्यथा मैं अपनी बेटी के साथ यह घर हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूँ.
नरेश के पैरों तले तो मानो जमीन ही खिसक गई.एकाएक उसकी नजर रश्मि के मासूम चेहरे पर पड़ी. वो एकटक बस नरेश को प्रश्नात्मक दृष्टि से निहारे जा रही थी मानो कह रही हो पापा, अगर आपको मम्मी छोड़ कर चली गई तो मुझे भी भूल जाना, मुझे तो मम्मी के साथ ही जाना होगा. सोचो पापा, मम्मी को तो कोई न कोई बेहतर जीवनसाथी फिर भी मिल जायेगा मगर मेरा क्या होगा? आपका क्या होगा?
मासूम का चेहरा देख नरेश की आँख से अपने आप ही आँसू बह निकले और उसने खिड़की से बाहर देखती अपनी पत्नि आरती के कँधे पर हाथ रखते हुए कहा: आरती, तुम्हें मालूम है आज कौन सा दिन है? आरती आश्चर्य से उसका मूँह देखने लग गई. नरेश जारी रहा; आज प्रमियों का दिवस है-वेलेन्टाईन डे और आज मैं तुम्हें एक तोहफा देना चाहता हूँ: आज से मैं शराब को कभी हाथ नहीं लगाऊँगा.
आरती को मानो सर्वस्व मिल गया इस वेलेन्टाईन डे के नायाब तोहफे के रुप में. वो पलट कर नरेश के गले लग गई और फूट फूट कर रोने लगी. ये खुशी के आंसू थे. रश्मि भी दोनों पैर उछाल उछाल कर किलकारी मारने लगी; मानो कह रही हो: मेरे मम्मी पापा जिन्दाबाद-वेलेन्टाईन डे जिन्दाबाद-शराब मुर्दाबाद!!
जिन्दाबाद मुर्दाबाद
नोट: यह मेरी प्रथम कहानी लेखन का प्रयास है, कृप्या अपनी प्रतिक्रिया दें और मुझे क्या सुधार करना चाहिये, सलाह दें.
अभी दिन ही कितने बीते हैं जब उन्होंने साथ जीने मरने की कसमें खाई थीं. उस चाँद के नीचे, नदी किनारे बैठे, सात जन्मों तक एक दूसरे का साथ निभाने का वादा किया था. उसके तन से आती मादक खुशबू में नरेश कैसे नशे में झूम उठता था. उसका सर्वस्व वो, उसकी और सिर्फ उसकी आरती.
कितने उत्साह से दोनों शादी के बन्धन में बँधे और फिर डूब गये अपनी ही एक अनोखी दुनिया में. समय के साथ साथ नरेश अपने कैरियर में और आरती, इस घर के आँगन को किलकारियों से भर देने के लिए आने वाले नये सदस्य के आगमन की तैयारियों में जुट गई.
नरेश अपने कार्यक्षेत्र में तरक्की करता गया और आगे बढ़ने का नशा ऐसा सर चढ़कर बोला कि उसे कुछ ख्याल ही न रहा कि वो सिर्फ अपना ही नहीं, अपनी पत्नी आरती का भी है और उसकी जरुरत और किसी से ज्यादा उसकी आने वाली संतान को है. दिन भर काम में व्यस्त, शाम पार्टियों में और फिर देर रात शराब के नशे में धुत्त, घर लौटना और आते ही सो जाना, यही उसकी दिनचर्या हो गई. कब रश्मि पैदा हुई और कब तीन माह की हो गई, उसे पता ही नहीं लगा.
अनायास ही आई ये दूरियाँ आरती को चुभने लगीं. ऐसा नहीं कि आरती उसकी प्रगति की राहों में रोड़ा बनना चाहती हो या उसे नरेश का अपने कैरियर में आगे बढ़ना अच्छा न लगता हो मगर इन सबके बाद, रोज रात देर से शराब के नशे में चूर घर लौटना उसे नाकाबिले बरदाश्त गुजरता था. जब लाख समझाने पर नरेश न माना और बात बरदाश्त के बाहर हो गई, तो एक रात उसने नरेश के लौटने पर ऐसी बात कही कि नरेश के होश ही उड़ गये.
आरती ने साफ शब्दों में कह दिया कि या तो तुम शराब का संग कर लो या मेरा. हम दोनों एक साथ तुम्हारी संगनी बन कर नहीं रह सकतीं. आज तुम्हें हम दोनों में से एक को चुनना होगा अन्यथा मैं अपनी बेटी के साथ यह घर हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूँ.
नरेश के पैरों तले तो मानो जमीन ही खिसक गई.एकाएक उसकी नजर रश्मि के मासूम चेहरे पर पड़ी. वो एकटक बस नरेश को प्रश्नात्मक दृष्टि से निहारे जा रही थी मानो कह रही हो पापा, अगर आपको मम्मी छोड़ कर चली गई तो मुझे भी भूल जाना, मुझे तो मम्मी के साथ ही जाना होगा. सोचो पापा, मम्मी को तो कोई न कोई बेहतर जीवनसाथी फिर भी मिल जायेगा मगर मेरा क्या होगा? आपका क्या होगा?
मासूम का चेहरा देख नरेश की आँख से अपने आप ही आँसू बह निकले और उसने खिड़की से बाहर देखती अपनी पत्नि आरती के कँधे पर हाथ रखते हुए कहा: आरती, तुम्हें मालूम है आज कौन सा दिन है? आरती आश्चर्य से उसका मूँह देखने लग गई. नरेश जारी रहा; आज प्रमियों का दिवस है-वेलेन्टाईन डे और आज मैं तुम्हें एक तोहफा देना चाहता हूँ: आज से मैं शराब को कभी हाथ नहीं लगाऊँगा.
आरती को मानो सर्वस्व मिल गया इस वेलेन्टाईन डे के नायाब तोहफे के रुप में. वो पलट कर नरेश के गले लग गई और फूट फूट कर रोने लगी. ये खुशी के आंसू थे. रश्मि भी दोनों पैर उछाल उछाल कर किलकारी मारने लगी; मानो कह रही हो: मेरे मम्मी पापा जिन्दाबाद-वेलेन्टाईन डे जिन्दाबाद-शराब मुर्दाबाद!!
शराब घर बर्बाद कर देती है.
अभी दिन ही कितने बीते हैं जब उन्होंने साथ जीने मरने की कसमें खाई थीं. उस चाँद के नीचे, नदी किनारे बैठे, सात जन्मों तक एक दूसरे का साथ निभाने का वादा किया था. उसके तन से आती मादक खुशबू में नरेश कैसे नशे में झूम उठता था. उसका सर्वस्व वो, उसकी और सिर्फ उसकी आरती.
कितने उत्साह से दोनों शादी के बन्धन में बँधे और फिर डूब गये अपनी ही एक अनोखी दुनिया में. समय के साथ साथ नरेश अपने कैरियर में और आरती, इस घर के आँगन को किलकारियों से भर देने के लिए आने वाले नये सदस्य के आगमन की तैयारियों में जुट गई.
नरेश अपने कार्यक्षेत्र में तरक्की करता गया और आगे बढ़ने का नशा ऐसा सर चढ़कर बोला कि उसे कुछ ख्याल ही न रहा कि वो सिर्फ अपना ही नहीं, अपनी पत्नी आरती का भी है और उसकी जरुरत और किसी से ज्यादा उसकी आने वाली संतान को है. दिन भर काम में व्यस्त, शाम पार्टियों में और फिर देर रात शराब के नशे में धुत्त, घर लौटना और आते ही सो जाना, यही उसकी दिनचर्या हो गई. कब रश्मि पैदा हुई और कब तीन माह की हो गई, उसे पता ही नहीं लगा.
अनायास ही आई ये दूरियाँ आरती को चुभने लगीं. ऐसा नहीं कि आरती उसकी प्रगति की राहों में रोड़ा बनना चाहती हो या उसे नरेश का अपने कैरियर में आगे बढ़ना अच्छा न लगता हो मगर इन सबके बाद, रोज रात देर से शराब के नशे में चूर घर लौटना उसे नाकाबिले बरदाश्त गुजरता था. जब लाख समझाने पर नरेश न माना और बात बरदाश्त के बाहर हो गई, तो एक रात उसने नरेश के लौटने पर ऐसी बात कही कि नरेश के होश ही उड़ गये.
आरती ने साफ शब्दों में कह दिया कि या तो तुम शराब का संग कर लो या मेरा. हम दोनों एक साथ तुम्हारी संगनी बन कर नहीं रह सकतीं. आज तुम्हें हम दोनों में से एक को चुनना होगा अन्यथा मैं अपनी बेटी के साथ यह घर हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूँ.
नरेश के पैरों तले तो मानो जमीन ही खिसक गई.एकाएक उसकी नजर रश्मि के मासूम चेहरे पर पड़ी. वो एकटक बस नरेश को प्रश्नात्मक दृष्टि से निहारे जा रही थी मानो कह रही हो पापा, अगर आपको मम्मी छोड़ कर चली गई तो मुझे भी भूल जाना, मुझे तो मम्मी के साथ ही जाना होगा. सोचो पापा, मम्मी को तो कोई न कोई बेहतर जीवनसाथी फिर भी मिल जायेगा मगर मेरा क्या होगा? आपका क्या होगा?
मासूम का चेहरा देख नरेश की आँख से अपने आप ही आँसू बह निकले और उसने खिड़की से बाहर देखती अपनी पत्नि आरती के कँधे पर हाथ रखते हुए कहा: आरती, तुम्हें मालूम है आज कौन सा दिन है? आरती आश्चर्य से उसका मूँह देखने लग गई. नरेश जारी रहा; आज प्रमियों का दिवस है-वेलेन्टाईन डे और आज मैं तुम्हें एक तोहफा देना चाहता हूँ: आज से मैं शराब को कभी हाथ नहीं लगाऊँगा.
आरती को मानो सर्वस्व मिल गया इस वेलेन्टाईन डे के नायाब तोहफे के रुप में. वो पलट कर नरेश के गले लग गई और फूट फूट कर रोने लगी. ये खुशी के आंसू थे. रश्मि भी दोनों पैर उछाल उछाल कर किलकारी मारने लगी; मानो कह रही हो: मेरे मम्मी पापा जिन्दाबाद-वेलेन्टाईन डे जिन्दाबाद-शराब मुर्दाबाद!!
Thursday, January 22, 2009
जबलपुर हिन्दी ब्लॉगर्स मीट की रिपोर्ट
विगत १९ जनवरी २००९ को जबलपुर ब्लॉगर्स मीट का आयोजन 'होटल रुपाली इन' जबलपुर में किया गया. कार्यक्रम में जबलपुर के हिन्दी ब्लॉगर्स ने शिरकत की. कार्यक्रम के मुख्य अथिति ’विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय हिन्दी ब्लॉगर के सम्मान" से नवाजे गये कनाडा से पधारे श्री समीर लाल रहे, जो अपना ब्लॉग ’उड़न तश्तरी’ के नाम से लिखते हैं.
स्वागत भाषण श्री गिरीश बिल्लोरे ’मुकुल’ ने दिया एवं उन्होंने हिन्दी ब्लॉगिंग के प्रसार एवं प्रसार में जबलपुर के ब्लॉगर्स का योगदान एवं भावी योजनाओं पर प्रकाश डाला.
अपने उदबोधन आख्यान में श्री समीर लाल, जिनका गृह नगर जबलपुर ही है एवं जो पेशे से चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट हैं, ने जबलपुर में हिन्दी ब्लॉगर्स की बढ़ती संख्या एवं इसके प्रति लोगों के बढ़ते रुझान पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि जब मैने २००६ मार्च में हिन्दी ब्लॉगिंग शुरु की थी, तब विश्व भर में अंतर्जाल (इन्टरनेट) पर हिन्दी ब्लॉगर्स की संख्या मात्र एक सैकड़ा थी. आज सबके अथक प्रयास एवं इसके प्रसार के लिए किए जा रहे सार्थक प्रयासों से यह संख्या मात्र ३ साल से भी कम समय में ६००० से ज्यादा हो चुकी है. उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि २०१० के अंत तक इस संख्या को आप ५०००० के पार देखेंगे और तब हिन्दी ब्लॉगिंग से आय का एक नया आयाम खुलेगा.
हिन्दी ब्लॉगिंग के विषय में बोलते हुए उन्होंने कहा कि ब्लॉग याने चिट्ठा अंतरजाल (इन्टरनेट) पर पिछले एक दशक में चर्चित हुआ. यह एक ऐसा माध्यम है, जो आपको अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता देता है.आप अपने दिल के भाव, विचार या एकत्रित जानकारी को अपने चिट्ठे पर, बिना किसी संपादकीय हस्तक्षेप या काट छांट के, अविलम्ब छाप सकते हैं एवं तत्क्षण विश्व के कोने कोने तक अपनी बात पहुँचा सकते हैं.ब्लॉग आपके पाठकों को आपकी द्वारा छापी गई सामग्री पर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने की सुविधा भी उपलब्ध कराता है, जिसके द्वारा लेखक या चिट्ठाकार एवं उसके पाठकों के बीच एक सहज वैचारिक एवं परस्पर वार्तालाप के संबंध स्थापित हो जाता है.
उन्होंने यह भी बताया कि गुगल का ब्लॉगर्स, वर्ड प्रेस आदि ऐसी अनेकों साईटस अंतरजाल पर हैं जो आपको मुफ्त में ब्लॉग बनाने की सुविधा उपलब्ध कराती हैं. यह आपको अनगिनत पन्नों की जगह उपलब्ध कराते हैं, चाहे जितना मन आये, लिखिये. पूरी की पूरी किताब लिखिये और छापिये मगर जगह आपको कम नहीं पड़ेगी. अंतरजाल पर ही बारहा (Baraha.exe) जैसे अनेकों औजार उपलब्ध हैं जिनके सहारे आप आसानी से, जिस तरह आप अंग्रेजी या रोमन में टंकण करते हैं, वैसे ही हिन्दी में भी टंकण कर सकते हैं. यह इतना आसान है कि मानिये आपको हिन्दी में ’कमल’ लिखना है तो आपको बस 'kamala" ही टंकित करना होगा.
उन्होंने आगे बताया कि इस ब्लॉगिंग की ताकत को लोगों ने पहचाना है और आज अमिताभ बच्चन, मनोज बाजपेयी, मिडिया से जुड़े पुण्य प्रसन्न बाजपेयी, शितल राजपूत, कवि श्रेष्ठ कुँवर बैचेन, अशोक चक्रधर, साहित्यकार उदय प्रकाश, गीत चतुर्वेदी जैसे नाम इससे जुड़े हैं और नियमित ब्लॉग लिख रहे हैं. कालेज के छात्रों से लेकर गृहणियों, पत्रकारों से लेकर शौकिया लेखकों तक आज यह अभिव्यक्ति का स्वतंत्र माध्यम अपनी पहुँच बना चुका है.
अपने उदबोधन को विराम देते हुए उन्होंने सभी उपस्थित ब्लॉगर्स से आह्वाहन किया कि वो हर माह मात्र एक नया ब्लॉग खोलने के लिए एक नये व्यक्ति को जोड़ें, जो कि एक बहुत सरल काम है. आगे उन्होंने लोगों को विश्वास दिलाया कि इसके गुणात्मक प्रभाव से एक दिन अंग्रेजी से आगे हिन्दी इन्टरनेट पर राज करेगी.
कार्यक्रम में जबलपुर के हिन्दी ब्लॉगर्स श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव, श्री राजेश दुबे, श्री ’बवाल’, श्री संजय तिवारी, श्री आनन्द कृष्ण, सुश्री शैली खत्री आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही एवं उनकी अनेकों जिज्ञासाओं का निराकरण श्री समीर लाल ने किया. अनेकों सुझावों और प्रस्तावों के साथ कार्यक्रम रात्रि भोज के साथ सम्पन्न हुआ.
जबलपुर ब्लॉगर मीट
एवं
समीर जी ज्ञापन पर नज़रे इनायत
स्वागत भाषण श्री गिरीश बिल्लोरे ’मुकुल’ ने दिया एवं उन्होंने हिन्दी ब्लॉगिंग के प्रसार एवं प्रसार में जबलपुर के ब्लॉगर्स का योगदान एवं भावी योजनाओं पर प्रकाश डाला.
अपने उदबोधन आख्यान में श्री समीर लाल, जिनका गृह नगर जबलपुर ही है एवं जो पेशे से चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट हैं, ने जबलपुर में हिन्दी ब्लॉगर्स की बढ़ती संख्या एवं इसके प्रति लोगों के बढ़ते रुझान पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि जब मैने २००६ मार्च में हिन्दी ब्लॉगिंग शुरु की थी, तब विश्व भर में अंतर्जाल (इन्टरनेट) पर हिन्दी ब्लॉगर्स की संख्या मात्र एक सैकड़ा थी. आज सबके अथक प्रयास एवं इसके प्रसार के लिए किए जा रहे सार्थक प्रयासों से यह संख्या मात्र ३ साल से भी कम समय में ६००० से ज्यादा हो चुकी है. उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि २०१० के अंत तक इस संख्या को आप ५०००० के पार देखेंगे और तब हिन्दी ब्लॉगिंग से आय का एक नया आयाम खुलेगा.
हिन्दी ब्लॉगिंग के विषय में बोलते हुए उन्होंने कहा कि ब्लॉग याने चिट्ठा अंतरजाल (इन्टरनेट) पर पिछले एक दशक में चर्चित हुआ. यह एक ऐसा माध्यम है, जो आपको अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता देता है.आप अपने दिल के भाव, विचार या एकत्रित जानकारी को अपने चिट्ठे पर, बिना किसी संपादकीय हस्तक्षेप या काट छांट के, अविलम्ब छाप सकते हैं एवं तत्क्षण विश्व के कोने कोने तक अपनी बात पहुँचा सकते हैं.ब्लॉग आपके पाठकों को आपकी द्वारा छापी गई सामग्री पर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने की सुविधा भी उपलब्ध कराता है, जिसके द्वारा लेखक या चिट्ठाकार एवं उसके पाठकों के बीच एक सहज वैचारिक एवं परस्पर वार्तालाप के संबंध स्थापित हो जाता है.
उन्होंने यह भी बताया कि गुगल का ब्लॉगर्स, वर्ड प्रेस आदि ऐसी अनेकों साईटस अंतरजाल पर हैं जो आपको मुफ्त में ब्लॉग बनाने की सुविधा उपलब्ध कराती हैं. यह आपको अनगिनत पन्नों की जगह उपलब्ध कराते हैं, चाहे जितना मन आये, लिखिये. पूरी की पूरी किताब लिखिये और छापिये मगर जगह आपको कम नहीं पड़ेगी. अंतरजाल पर ही बारहा (Baraha.exe) जैसे अनेकों औजार उपलब्ध हैं जिनके सहारे आप आसानी से, जिस तरह आप अंग्रेजी या रोमन में टंकण करते हैं, वैसे ही हिन्दी में भी टंकण कर सकते हैं. यह इतना आसान है कि मानिये आपको हिन्दी में ’कमल’ लिखना है तो आपको बस 'kamala" ही टंकित करना होगा.
उन्होंने आगे बताया कि इस ब्लॉगिंग की ताकत को लोगों ने पहचाना है और आज अमिताभ बच्चन, मनोज बाजपेयी, मिडिया से जुड़े पुण्य प्रसन्न बाजपेयी, शितल राजपूत, कवि श्रेष्ठ कुँवर बैचेन, अशोक चक्रधर, साहित्यकार उदय प्रकाश, गीत चतुर्वेदी जैसे नाम इससे जुड़े हैं और नियमित ब्लॉग लिख रहे हैं. कालेज के छात्रों से लेकर गृहणियों, पत्रकारों से लेकर शौकिया लेखकों तक आज यह अभिव्यक्ति का स्वतंत्र माध्यम अपनी पहुँच बना चुका है.
अपने उदबोधन को विराम देते हुए उन्होंने सभी उपस्थित ब्लॉगर्स से आह्वाहन किया कि वो हर माह मात्र एक नया ब्लॉग खोलने के लिए एक नये व्यक्ति को जोड़ें, जो कि एक बहुत सरल काम है. आगे उन्होंने लोगों को विश्वास दिलाया कि इसके गुणात्मक प्रभाव से एक दिन अंग्रेजी से आगे हिन्दी इन्टरनेट पर राज करेगी.
कार्यक्रम में जबलपुर के हिन्दी ब्लॉगर्स श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव, श्री राजेश दुबे, श्री ’बवाल’, श्री संजय तिवारी, श्री आनन्द कृष्ण, सुश्री शैली खत्री आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही एवं उनकी अनेकों जिज्ञासाओं का निराकरण श्री समीर लाल ने किया. अनेकों सुझावों और प्रस्तावों के साथ कार्यक्रम रात्रि भोज के साथ सम्पन्न हुआ.
एवं
(नोट: अखबार में प्रेषित रिपोर्ट)
Wednesday, January 21, 2009
बस यूँ ही
भाई समीर लाल जी के प्रोत्साहन पर यह ब्लॉग शुरु किया है. आज ही ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत पर पंजीकृत करा टेस्ट कर रहा हूँ. अपना स्नेह बनाये रखें.
Monday, January 19, 2009
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