संजय के संदेश...
भाई मेरे ये तो हकीमों के लिये तो लाइलाज है. नकली लबादा उतार फ़ेंकों, फ़िर देखो क्या मस्ती चढती है उस परमात्मा की.रामराम.
एक बार या तो खुल कर रो ही लो या हँस ही लो!!! :)वैसे पंक्तियाँ लाजबाब हैं, शायर साहेब!!
आप अच्छा लिख लेते हैं.
Ek baar Dil se bhi hansne ki koshish kijie sir!
कलयुग के हिसाब से ठीक हैं साब! हाथी के दाँतों की तरह आदमी ही आज चलता है।
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5 comments:
भाई मेरे ये तो हकीमों के लिये तो लाइलाज है. नकली लबादा उतार फ़ेंकों, फ़िर देखो क्या मस्ती चढती है उस परमात्मा की.
रामराम.
एक बार या तो खुल कर रो ही लो या हँस ही लो!!! :)
वैसे पंक्तियाँ लाजबाब हैं, शायर साहेब!!
आप अच्छा लिख लेते हैं.
Ek baar Dil se bhi hansne ki koshish kijie sir!
कलयुग के हिसाब से ठीक हैं साब! हाथी के दाँतों की तरह आदमी ही आज चलता है।
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