Tuesday, June 23, 2009

समीर लाल ’उड़नतश्तरी’ जी नवगीत की पाठशाला में

अपने समीर लाल जी का गीत ’द्वारचार कर जाती गरमी’ नवगीत की पाठशाला में प्रकाशित हुआ है. गीत के बोल, उसके भाव और प्रवाह प्रभावित करता है. समय मिले, तो जरुर पढ़ें और कोई गुनगुना सके तब तो आनन्द ही आ जायेगा.

समीर लाल जी


समीर लाल जी के नित नये रंग देखने मिलते हैं, उसी कड़ी में इसे जोड़ कर देखें. उनकी बहुमुखी प्रतिभा बरबस ही आकर्षित करती है कि एक व्यक्ति और रंग अनेक.

प्रणाम करता हूँ समीर जी आपको.

समीर जी से निवेदन है कि स्नेहाशीष बनाये रखिये हमेशा की तरह.

5 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही लाजवाब गीत है वो और समीरजी तो हर विधा मे माहिर और सबके प्रेरणाश्रोत हैं.

रामराम.

संगीता पुरी said...

लिंक के लिए धन्‍यवाद .. सचमुच बहुत सकारात्‍मक गीत है।

कडुवासच said...

...bahut khoob !!!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

वाह... वाह-वाह... वाह-वाह-वाह....

रामकृष्ण गौतम said...

Bahut Sundar sir.