Thursday, April 7, 2011

मैं अन्ना को मिस्ड काल नहीं करुँगा- समीर लाल ’समीर’

बार बार संदेश आ रहे हैं कि  022-61550789 पर मिस्ड काल करें और भ्रष्ट्राचार के खिलाफ अन्ना हजारे की इस मुहिम में अपना समर्थन प्रदर्शित करें.

भ्रष्ट्राचार क्या है?

किसी भी संसाधन का अपने हक में दुरुपयोग. अर्थात जिस संसाधन के हम हकदार नहीं है, उसे अपनी पहुँच (चाहें व्यक्तिगत या खरीदी) के माध्यम से खरीद असली हकदार से छीन या अन्य पर बोझ स्वरुप लाद देना.

उदाहरण के लिए, अगर हम रेल्वे में अपनी बर्थ आरक्षित कराने के लिए कुछ रुपये देकर अपना काम करा लेते हैं तो उसका असली हकदार जो वेटिंग लिस्ट में है, वह उस हक से वंचित हो जाता है. फलस्वरुप या तो असली हकदार यात्रा करने से वंचित हो जाता है या तकलीफ में यात्रा करता है या अन्य संसाधनों पर अतिरिक्त व्यय करके अपनी यात्रा पूर्ण करता है. और इसका जिम्मेदार भ्रष्ट्राचार है.

जब हम मिस्ड काल करते हैं, तो हम संसाधनों का उपयोग तो कर लेते हैं किन्तु उसका दाम नहीं चुकाते. यह दाम अन्ततः सभी उपभोक्ताओं को दर वृद्धि के रुप में झेलना होता है क्यूँकि कोई भी व्यवसाय अपने व्यय को उपभोक्ताओं से ही वसूलता है.

ऐसे में क्या जन समर्थन के आंकड़े दिखाने के लिए मिस्ड काल का उपयोग उचित है? क्या हम संसाधनों का दुरुपयोग नहीं कर रहे है? क्या हम अपने समर्थन का मूल्य उन पर नहीं थोप रहे, जो या तो इस योग्य नहीं या जो समर्थन नहीं कर रहे?

संसाधनों का दुरुपयोग भी एक तरह का भेष्ट्राचार है. कृपया इसे भ्रष्ट्राचार के खिलाफ छेड़ी मुहिम का हिस्सा बना कर गलत संदेश न दें.

क्या यह उचित होगा कि हम अन्ना की भेष्ट्राचार के खिलाफ छेड़ी इस मुहिम में शामिल होने रेल में रिश्वत देकर पहुँचें?

मैं अन्ना हजारे के आंदोलन में उनके साथ हूँ लेकिन मैं मिस्ड काल करने का विरोधी हूँ और मैं मिस्ड काल नहीं करूँगा.

क्या आप करेंगे?

Saturday, February 12, 2011

समीर लाल का जीवन भी किसी उपन्यास से कम नहीं: ’ देख लूँ तो चलूँ ’: विवेक रंजन श्रीवास्तव




संस्मरण: ’ देख लूँ तो चलूँ
लेखक : समीर लाल
मूल्य : 100 रू.
पृष्ठ:  88
प्रकाशक: शिवना प्रकाशन, पी. सी. लैब, सम्राट काम्पलेक्स बेसमेंट, बस स्टेंड, सीहोर (म.प्र.) ४६६००१
समीक्षक:विवेक रंजन श्रीवास्तव, ओ.बी. 11, विद्युत मंडल कालोनी, जबलपुर 

एक ऐसा संस्मरण जो कहीं कहीं ट्रेवेलाग है, कहीं डायरी के पृष्ठ, कहीं कविता और कहीं उसमें कहानी के तत्व है। कहीं वह एक शिक्षाप्रद लेख है, दरअसल समीर लाल की नई कृति ‘‘देख लूँ तो चलूँ‘‘ उपन्यासिका टाइप का संस्मरण है। समीर लाल  हिन्दी ब्लाग जगत के पुराने,  सुपरिचित और लोकप्रिय लेखक व हर ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाले चर्चित टिप्पणीकार है। उनका स्वंय का जीवन भी किसी उपन्यास से कम नहीं है।

 ‘‘जब वी मेट‘‘ के रतलाम से शुरू उनका सफर सारी दुनियाँ के ढेरो चक्कर लगाता हुआ निरंतर जारी है। उनकी हृष्ट पुष्ट कद काठी के भीतर एक अत्यंत संवेदनशील मन है और दुनियादारी को समझने वाली कुशाग्रता भी उनमें कूट-कूट कर भरी हुई है। अपने मनोभावों को पाठक तक चित्रमय प्रस्तुत कर सकने की क्षमता वाली भाषाई कुशलता भी उनमें है। इस सबका ही परिणाम है कि जब मैं उनकी नई पुस्तक ‘‘देख लूँ तो चलूँ‘‘ पढने बैठा तो बस ’पढ़ लूँ तो उठूँ’ वाली शैली में पूरा ही पढ गया। 

इस संस्मरण में प्रवासी भारतीयों का अपनी धरती से जुडाव वर्णित है। दरअसल हमारी संस्कृति में अपनेपन और लगाव की शिक्षा बचपन से ही हमारे संस्कारों से हमें मिलती है। रिश्तों, धरती और घर की यादों का जुडाव तो बहुत बड़ी बात है, हमारा बस चले तो हम डॉट पेन की रिफिल में भी स्याही भरकर उसे अपने से जुदा न होने दें। इसके बिल्कुल विपरीत जब पाश्चात्य यूज एडं थ्रो की संस्कृति से हम भारतीयों को दो चार होना पड़ता है तो जो मनोभाव उत्पन्न होते है उनकी अभिव्यक्ति के शब्दचित्र इस संस्मरणिका में देखने को मिलते है।

अनेक स्थलों पर समीर बहुत कम शब्दो में बहुत बड़े संदेश दे गये है, जैसे ‘‘कभी रख कर देखा है उनके जूते में अपना पैर‘‘ संवेदना का इससे बड़ा और क्या अनुभव कोई कर सकता है। वे लिखते है ‘‘ सुविधायें बहुत तेजी से आदत खराब करती है‘‘ यह एक शाष्वत तथ्य है। इन्हीं सुविधाओं की गुलामी के चलते चाह कर भी अनेक प्रवासी भारतीय स्वदेश वापस ही नहीं लौट पाते ।

इसी कृति में समीर लिखते है कि ‘‘अम्मा कहती थीं हमेशा सम्भल कर बोलना चाहिए‘‘, ‘‘यही होता है दिल के भीतर भगवान बैठा है और उसी को ढूंढने मंदिर-मंदिर तीरथ-तीरथ भटक रहे है‘‘, ‘‘व्यवहार बिना सूद का कर्जा है‘‘,  ‘‘ चोरी कैसी भी अपराधबोध पैकेज डील की तरह साथ आता ही है‘‘ ।

उनकी यह कृति अप्रवासी भारतीयों के किसी भारतीय सम्मेलन में सभी आमंत्रितों को भेंट किये जाने हेतु सर्वथा उपयुक्त है , क्योकि इन कथानको में हर वह भारतीय कही न कही स्वयं को उपस्थित पायेगा जिसकी जड़ें तो भारत में हैं पर वह विदेशो में फल फूल रहा है । 




ओ.बी. 11, विद्युत मंडल कालोनी, 
जबलपुर 
vivek ranjan shrivastava


Thursday, December 23, 2010

सम्मान समारोह, जबलपुर

चार मित्रों  राजेश पाठक,गिरीश बिल्लोरे,बसंत मिश्रा,डा०विजय तिवारी किसलय, ने  विगत तेरह  वर्ष पूर्व एक कल्पना की थी. वो यह कि हम स्वर्गीय हीरा लाल गुप्त मधुकर जी स्मृति  में उनके समकालीन व्यक्तित्वों को सादर आमंत्रित कर उनसे सीमित-साधनों के दौर में होने वाली सफ़ल एवम सुफ़ल साहित्य-साधना एवम पत्रकारिता के अनकहे बिन्दुओं से परिचित होंगे और बस एक कार्यक्रम की कल्पना को आकार दिया मधुकर जी के के जन्म दिवस पर “ स्वर्गीय हीरालाल गुप्त स्मृति समारोह ”के रूप में “और अगले ही वर्ष से शुरु हो गया यह सिलसिला.

बस विनम्र भाव से अपनी बुजुर्ग पीढ़ी से आशीर्वाद लेते ये युवा प्रति वर्ष स्वर्गीय हीरा लाल गुप्त मधुकर जी के समकालीन  बुजुर्ग पत्रकार को तथा एक युवा विचारवान सृजन धर्मी पत्रकार को सम्मानित करने लगे. उनसे समझने लगे सीमित साधनों में असीमित सफ़लता के रहस्य .

इसी क्रम में 2008 से  अंतरज़ाल के ज़रिये लेखन करने वाले लेखकों  की तलाश की गई. जबलपुर के श्रेष्ठ ब्लागर के रूप में 2009 श्री महेंद्र मिश्रा को सम्मानित किया इस वर्ष 2010 को उड़नतश्तरी यानि समीरलाल  

सतत जारी वैचारिक कार्यक्रम

स्वर्गीय हीरालाल गुप्त स्मृति सम्मान
श्री महेश महेदेल
वरिष्ठ पत्रकार ,स्वतंत्र-मत,जबलपुर
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सव्यसाची प्रमिला देवी बिल्लोरे स्मृति सम्मान 2010
ओम कोहली ,संपादक ,डीज़ि-केबल, जबलपुर
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लिमटि खरे,पत्रकार नई दिल्ली
कृष्ण कुमार खरे ,वरिष्ठ पत्रकार,जबलपुर
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हिन्दी के श्रेष्ठ ब्लागर : समीरलाल,कनाडा ,
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विमोचन :-

श्री सतीश शर्मा की कृति “दिखावा खत्म : मंहगाई खत्म ” का


सतीश शर्मा जी


कार्यक्रम स्थल एवम समय :- 

भातखण्डे संगीत महाविद्यालय, मदन महल स्टेशन के पास , जबलपुर मध्यप्रदेश
शुक्रवार 24 दिसम्बर 2010 समय शाम 06:30 बजे से

Wednesday, December 1, 2010

जबलपुर ब्लॉगर्स कार्यशाला आज: दिनांक १ दिसम्बर, २०१०

श्री ललित शर्मा और श्री जी के अवधिया जी जबलपुर पधार चुके हैं. श्री विजय सप्पति जी भोपाल से ट्रेन पकड़ चुके हैं और दोपहर ३ बजे तक उनके जबलपुर आगमन की संभावना है.

सभी मित्रों से अनुरोध है कि

शाम ६ बजे दिनांक १ दिसम्बर, २०१०


होटल सूर्या, प्रथम तल, 
बस स्टैंड के पीछे, 
राईट टाउन 

के हॉल में उपस्थित हो कार्यशाला एवं आयोजन में सम्मलित हों. आपके आगमन की प्रतिक्षा रहेगी.

Monday, November 29, 2010

जबलपुर हिन्दी ब्लागर्स कार्यशाला: दिनांक ०१/१२/२०१०



बतौर पांचवा खम्भा ’ब्लॉग विधा’ के तेजी से हो रहे प्रसार एवं विस्तार से सभी परिचित हैं.

दिनांक 01/12/2010 को जबलपुर हिन्दी ब्लागर्स कार्यशाला का आयोजन होटल सूर्या के कांफ़्रेंस हाल में सायं ६ बजे से किया गया है. कार्यशाला के मुख्य अतिथि श्री विजय सत्पथी, हैदराबाद एवं विशिष्ठ अतिथि श्री ललित शर्मा, रायपुर होंगे. साथ ही कनाडा से पधारे उड़न तश्तरी ब्लॉग वाले भाई समीर लाल, जबलपुर से महेंद्र मिश्रा जी, गिरीश बिल्लोरे जी, कार्टूनिस्ट राजेश डूबे जी,बवाल जी,पंकज गुलुस, डाक्टर विजय तिवारी’किसलय’ मयूर बक्शी, विवेकरंजन श्रीवास्तव, सलिल समाधिया, प्रेम फ़रुख्खाबादी, आनंद कृष्ण ,शशिकान्त ओझा,संजू तिवारी आदि इस कार्यशाला में शामिल होंगे.

इसी अवसर पर हिन्दी ब्लॉगिंग में आचार संहिता, हिन्दी ब्लॉगिंग के प्रचार एवं प्रसार के लिए आवश्यक कदम एवं अन्य विषयों पर विमर्श किया जायेगा.

यदि कोई तकनीकी समस्या न हुई तो जबलपुर की कार्यशाला का लाइव प्रसारण करने का प्रयास रहेगा.अगर यह सहज हो सका तो सभी ब्लॉगर्स चैट के ज़रिये इस कार्यशाला से जुड़ सकतें हैं.

Thursday, September 30, 2010

खुद जबाब होकर ये सवाल

जानते है सब ,फिर भी अंजान बनते है ।
इसी  तरह  वो , हमें परेशान  करते  है  ।
पूछ्ते है हमसे  कि , आपको क्या पसन्द है ।
और खुद जबाब होकर ये सवाल करते है ।

Wednesday, September 29, 2010

माता


घर मे हाथी पूजा जावेगा आप भे दर्शन कर ले