Monday, February 23, 2009

बम बम भोले

शंकर भोले

शिव प्रतिमा, कचनार सिटी, जबलपुर

महा शिवरात्रि की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.

Tuesday, February 17, 2009

जबलपुर: हाईटेक होते साहित्यकार: एक रिपोर्ट, कुछ तस्वीरें

विगत दिवस ’हिन्दी साहित्य संगम’ के तत्वाधान में श्री विजय तिवारी ’किसलय’ जी का जन्म दिवस शहर के वरिष्ट साहित्यकारों, चिट्ठाकारों, कवियों एवं गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति में मनाया गया. इस मौके पर सभी ने विजय तिवारी ’किसलय’ जी को जन्म दिवस की बधाई दी एवं उनके दीर्घायु होने की कामना की. संभाषणों एवं कविताओं का दौर चला.

इस अवसर पर उपस्थित वरिष्ट चिट्ठाकार समीर लाल, उड़न तश्तरी जी ने अपने उदबोधन से सबका ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने चिट्ठों और चिट्ठाकारी के लाभ, हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान पर प्रकाश डाला एवं उपस्थित सभी साहित्यकारों को चिट्ठाविश्व में आमंत्रित किया एवं इस हेतु किसी भी मदद के लिए अपने एवं अन्य चिट्ठाकारों के योगदान की पेशकश की. अपने उदबोधन के समापन में उन्होंने अपना मधुर गीत प्रस्तुत करके श्रोताओं को मंत्र मुग्ध किया.

प्रेम फरुख्खाबादी, शैली खत्री, गिरिश बिल्लोरे, डॉ गार्गी शंकर मिश्र ’मराल’, नलिन सूर्यवंशी ’ताज’, विजय नेमा, श्री ओंकार ठाकुर, आचार्य भगवत दुबे, आचार्य हरि शंकर दुबे, श्री विजय तिवारी ’किसलय’, दीपक आदि ने जहाँ एक ओर अपनी कविताओं और गज़लों का समा बाँधा, वहीं बवाल ने अपने अनोखे अंदाज में गीत प्रस्तुत किये. प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट राजेश दुबे ’डूबे जी’ ने कागज पेन्सिल के आभाव में हवा में ही कार्टून खींचने की पेशकश की. :)

कार्यक्रम का संचालन जाने माने मंच संचालक श्री राजेश पाठक ने किया.

अंत में स्वादिष्ट भोजन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ.

इसी अवसर की कुछ तस्वीरें:
से हिन्दी साहित्य संगम

से हिन्दी साहित्य संगम
से हिन्दी साहित्य संगम
से हिन्दी साहित्य संगम
से हिन्दी साहित्य संगम


चित्र साभार: संजय तिवारी ’संजू’

Monday, February 16, 2009

जिन्दाबाद-मुर्दाबाद

नोट: यह मेरी प्रथम कहानी लेखन का प्रयास है, कृप्या अपनी प्रतिक्रिया दें और मुझे क्या सुधार करना चाहिये, सलाह दें.

अभी दिन ही कितने बीते हैं जब उन्होंने साथ जीने मरने की कसमें खाई थीं. उस चाँद के नीचे, नदी किनारे बैठे, सात जन्मों तक एक दूसरे का साथ निभाने का वादा किया था. उसके तन से आती मादक खुशबू में नरेश कैसे नशे में झूम उठता था. उसका सर्वस्व वो, उसकी और सिर्फ उसकी आरती.

कितने उत्साह से दोनों शादी के बन्धन में बँधे और फिर डूब गये अपनी ही एक अनोखी दुनिया में. समय के साथ साथ नरेश अपने कैरियर में और आरती, इस घर के आँगन को किलकारियों से भर देने के लिए आने वाले नये सदस्य के आगमन की तैयारियों में जुट गई.

नरेश अपने कार्यक्षेत्र में तरक्की करता गया और आगे बढ़ने का नशा ऐसा सर चढ़कर बोला कि उसे कुछ ख्याल ही न रहा कि वो सिर्फ अपना ही नहीं, अपनी पत्नी आरती का भी है और उसकी जरुरत और किसी से ज्यादा उसकी आने वाली संतान को है. दिन भर काम में व्यस्त, शाम पार्टियों में और फिर देर रात शराब के नशे में धुत्त, घर लौटना और आते ही सो जाना, यही उसकी दिनचर्या हो गई. कब रश्मि पैदा हुई और कब तीन माह की हो गई, उसे पता ही नहीं लगा.

अनायास ही आई ये दूरियाँ आरती को चुभने लगीं. ऐसा नहीं कि आरती उसकी प्रगति की राहों में रोड़ा बनना चाहती हो या उसे नरेश का अपने कैरियर में आगे बढ़ना अच्छा न लगता हो मगर इन सबके बाद, रोज रात देर से शराब के नशे में चूर घर लौटना उसे नाकाबिले बरदाश्त गुजरता था. जब लाख समझाने पर नरेश न माना और बात बरदाश्त के बाहर हो गई, तो एक रात उसने नरेश के लौटने पर ऐसी बात कही कि नरेश के होश ही उड़ गये.

आरती ने साफ शब्दों में कह दिया कि या तो तुम शराब का संग कर लो या मेरा. हम दोनों एक साथ तुम्हारी संगनी बन कर नहीं रह सकतीं. आज तुम्हें हम दोनों में से एक को चुनना होगा अन्यथा मैं अपनी बेटी के साथ यह घर हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूँ.

नरेश के पैरों तले तो मानो जमीन ही खिसक गई.एकाएक उसकी नजर रश्मि के मासूम चेहरे पर पड़ी. वो एकटक बस नरेश को प्रश्नात्मक दृष्टि से निहारे जा रही थी मानो कह रही हो पापा, अगर आपको मम्मी छोड़ कर चली गई तो मुझे भी भूल जाना, मुझे तो मम्मी के साथ ही जाना होगा. सोचो पापा, मम्मी को तो कोई न कोई बेहतर जीवनसाथी फिर भी मिल जायेगा मगर मेरा क्या होगा? आपका क्या होगा?

मासूम का चेहरा देख नरेश की आँख से अपने आप ही आँसू बह निकले और उसने खिड़की से बाहर देखती अपनी पत्नि आरती के कँधे पर हाथ रखते हुए कहा: आरती, तुम्हें मालूम है आज कौन सा दिन है? आरती आश्चर्य से उसका मूँह देखने लग गई. नरेश जारी रहा; आज प्रमियों का दिवस है-वेलेन्टाईन डे और आज मैं तुम्हें एक तोहफा देना चाहता हूँ: आज से मैं शराब को कभी हाथ नहीं लगाऊँगा.

आरती को मानो सर्वस्व मिल गया इस वेलेन्टाईन डे के नायाब तोहफे के रुप में. वो पलट कर नरेश के गले लग गई और फूट फूट कर रोने लगी. ये खुशी के आंसू थे. रश्मि भी दोनों पैर उछाल उछाल कर किलकारी मारने लगी; मानो कह रही हो: मेरे मम्मी पापा जिन्दाबाद-वेलेन्टाईन डे जिन्दाबाद-शराब मुर्दाबाद!!

शराब घर बर्बाद कर देती है.

जिन्दाबाद मुर्दाबाद

नोट: यह मेरी प्रथम कहानी लेखन का प्रयास है, कृप्या अपनी प्रतिक्रिया दें और मुझे क्या सुधार करना चाहिये, सलाह दें.

अभी दिन ही कितने बीते हैं जब उन्होंने साथ जीने मरने की कसमें खाई थीं. उस चाँद के नीचे, नदी किनारे बैठे, सात जन्मों तक एक दूसरे का साथ निभाने का वादा किया था. उसके तन से आती मादक खुशबू में नरेश कैसे नशे में झूम उठता था. उसका सर्वस्व वो, उसकी और सिर्फ उसकी आरती.

कितने उत्साह से दोनों शादी के बन्धन में बँधे और फिर डूब गये अपनी ही एक अनोखी दुनिया में. समय के साथ साथ नरेश अपने कैरियर में और आरती, इस घर के आँगन को किलकारियों से भर देने के लिए आने वाले नये सदस्य के आगमन की तैयारियों में जुट गई.

नरेश अपने कार्यक्षेत्र में तरक्की करता गया और आगे बढ़ने का नशा ऐसा सर चढ़कर बोला कि उसे कुछ ख्याल ही न रहा कि वो सिर्फ अपना ही नहीं, अपनी पत्नी आरती का भी है और उसकी जरुरत और किसी से ज्यादा उसकी आने वाली संतान को है. दिन भर काम में व्यस्त, शाम पार्टियों में और फिर देर रात शराब के नशे में धुत्त, घर लौटना और आते ही सो जाना, यही उसकी दिनचर्या हो गई. कब रश्मि पैदा हुई और कब तीन माह की हो गई, उसे पता ही नहीं लगा.

अनायास ही आई ये दूरियाँ आरती को चुभने लगीं. ऐसा नहीं कि आरती उसकी प्रगति की राहों में रोड़ा बनना चाहती हो या उसे नरेश का अपने कैरियर में आगे बढ़ना अच्छा न लगता हो मगर इन सबके बाद, रोज रात देर से शराब के नशे में चूर घर लौटना उसे नाकाबिले बरदाश्त गुजरता था. जब लाख समझाने पर नरेश न माना और बात बरदाश्त के बाहर हो गई, तो एक रात उसने नरेश के लौटने पर ऐसी बात कही कि नरेश के होश ही उड़ गये.

आरती ने साफ शब्दों में कह दिया कि या तो तुम शराब का संग कर लो या मेरा. हम दोनों एक साथ तुम्हारी संगनी बन कर नहीं रह सकतीं. आज तुम्हें हम दोनों में से एक को चुनना होगा अन्यथा मैं अपनी बेटी के साथ यह घर हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूँ.

नरेश के पैरों तले तो मानो जमीन ही खिसक गई.एकाएक उसकी नजर रश्मि के मासूम चेहरे पर पड़ी. वो एकटक बस नरेश को प्रश्नात्मक दृष्टि से निहारे जा रही थी मानो कह रही हो पापा, अगर आपको मम्मी छोड़ कर चली गई तो मुझे भी भूल जाना, मुझे तो मम्मी के साथ ही जाना होगा. सोचो पापा, मम्मी को तो कोई न कोई बेहतर जीवनसाथी फिर भी मिल जायेगा मगर मेरा क्या होगा? आपका क्या होगा?

मासूम का चेहरा देख नरेश की आँख से अपने आप ही आँसू बह निकले और उसने खिड़की से बाहर देखती अपनी पत्नि आरती के कँधे पर हाथ रखते हुए कहा: आरती, तुम्हें मालूम है आज कौन सा दिन है? आरती आश्चर्य से उसका मूँह देखने लग गई. नरेश जारी रहा; आज प्रमियों का दिवस है-वेलेन्टाईन डे और आज मैं तुम्हें एक तोहफा देना चाहता हूँ: आज से मैं शराब को कभी हाथ नहीं लगाऊँगा.

आरती को मानो सर्वस्व मिल गया इस वेलेन्टाईन डे के नायाब तोहफे के रुप में. वो पलट कर नरेश के गले लग गई और फूट फूट कर रोने लगी. ये खुशी के आंसू थे. रश्मि भी दोनों पैर उछाल उछाल कर किलकारी मारने लगी; मानो कह रही हो: मेरे मम्मी पापा जिन्दाबाद-वेलेन्टाईन डे जिन्दाबाद-शराब मुर्दाबाद!!

शराब घर बर्बाद कर देती है.