मैं तो समीर चाचा के साथ बचपन से रहा हूँ हमेशा. फिर चाहे वो उनका दफ्तर रहा हो, राजनितिक मंच या पारिवारिक काम, मैं हमेशा साथ रहा. उनका खास स्नेह मुझ पर हमेशा रहा. वो जब भी कहीं जाते, मैं उनके बाजू में जरुर रहता चाहे जबलपुर में या जबलपुर के बाहर भोपाल, दिल्ली या मुम्बई.
भारत छोड़ने के बाद भी वो जब भी यहाँ आते हैं, जबलपुर में मैं उनके साथ हमेशा रहता हूँ. लेकिन आजकल वो जाने किन कार्यों को निष्पादित करने में लगे हैं, मेरी समझ के बाहर है. वैसे भी उनको बोलते सुनना या पढ़ना, इतनी करीबी के बाद भी, हर बार नया समीर लाल दिखा जाता है. लगता है कि चाचा को अभी जाना ही कितना है.
जब लगातार उनको ईमेल भेजे और फोन करके उनकी प्यार और स्नेह भरी फटकार सुनने के बाद भी मैं लगा रहा कि चाचा, ईमेल तो कर दिया करो तो आज उनका यह ईमेल आया है. क्या जबाब दूँ, समझ नहीं पा रहा था इसलिए आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ, आप ही कुछ बताईये. वो ही लिख देंगे उनको.
समीर चाचा ने यह लिखा है:(छापने के लिए उनसे पूछा नहीं हैं, ज्यादा से ज्यादा प्रसाद में डांटेंगे, और क्या!)
तेजी से भागता
यह उग्र समय...
थोड़ा सा बचा..
और
बच रहा
काम कितना सारा...
सोचता हूँ
जमाने के साथ मिल जाऊँ
उसके साथ कदमताल मिलाऊँ...
ईमान तोड़ूँ अपना
या फिर
काम छोड़ूँ अपना!
कैसा है
यह द्वन्द!!
न जाने क्यूँ
बिखरा हुआ है
यह छंद!!
तुम कुछ बताओ न!!
-समीर लाल ’समीर’
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8 comments:
कैसा है
यह द्वन्द!!
न जाने क्यूँ
बिखरा हुआ है
यह छंद!!
संजू भैया बात तो कांटे की है. आखिर जीवन की यही ऊहापोह तो दूर नही हो पाती. आखिर इस द्वंद को कौन तोड पाया है?
जरा गुरुजी से पूछ कर बताईये भारत आगमन कब हो रहा है?
रामराम.
समीर भाई के बिना मिशन-भेडाघाट संभव नहीं है
कब आ रहे हैं जी ........ तब तक मौजा ही मौजा
कैसा है
यह द्वन्द!!
न जाने क्यूँ
बिखरा हुआ है
यह छंद!!
पर ये होगा कब ?
bahut achcha laga yeh lekh.....
kavita bahut sunder hai....dil ko chhoo gayi.......
हाय हमारे न हुए एक भी ऐसे चाचा ...
चिट्ठी लिखते तो हम भी पोस्ट ठेल लेते ..
आजे से उडन जी को चचा बना लिया जाए का ..एकदमे ठीक किये जी ..डांटेंगे तो डांटेंगे ..कहियेगा लिख के डांटिये...एक ठो और चिट्ठा....व्हाट एन आईडिया सर जी ..
भेड़ाघाट .. हम भी चलेंगे ।
JAI HO SAMEER BHAI KI ....
ब्लॉग पर लिखे हुई रचनाओं और टिप्पणियों को दिल से पढ़िए, बस हो गई मुलाकात और द्वंद्व खत्म।
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