कितनो की तकदीर बदलनी है |
कितनो को सही रास्ते पर लाना है|
अपनी हाथ की लकीरॊ कॊ मत देखो |
तुम्हे तो लकीरो से भी आगे जाना है |
हमारे आंसू पोछ कर वो मुस्कराते है|
अपनी इसी अदा से बो दिल को चुराते है|
हाथ उनके छू जाये हमारे चेहरे को|
इसी उम्मीद मेहम बार बार खुद को रूलाते है ।
दिल की दुकान रूक सी गयी है |
सांसे मेरी थम सी गयी है |
दिल के डाक्टर से हमे पता चला |
इस दिल मे आपकी यादे जम सी है |
Tuesday, July 28, 2009
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7 comments:
दिल की दुकान रूक सी गयी है |
सांसे मेरी थम सी गयी है |
दिल के डाक्टर से हमे पता चला |
इस दिल मे आपकी यादे जम सी है |
वाह बहुत सुंदर रचना.
रामराम.
मनभावन रचना
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1. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
2. चाँद, बादल और शाम
3. तकनीक दृष्टा
शुक्र ये है कि वो आये तो....
-कहाँ व्यस्त हो भाई..
बढ़िया रचना है..सही कविताई हो रही है. :)
पहली बार आयी हूँ आपके blog पे ..'दिलकी दूकान ..... ' कितनी अलग अभिव्यक्ति है ...के दिल को ऐसाभी कहा जा सकता है ....पर ठीक ही कहा .....कई बार महसूस भी हुआ ....लेकिन आपने शब्दांकित कर दिया ..!
हमारी तरफ़ से भी बीलेटेड बधाई।
मेरी बधाईयाँ आपके ब्लाग पर दर्ज़ हो..
लेखनी प्रभावित करती है
फिर तो यह अटैक आ ही जाने दो तिवारी जी! इसका पीड़ित दूसरे जहाँ का नहीं होता, सारा जहाँ उसका हो जाता है।
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