Wednesday, March 18, 2009

समीर लाल ’उड़न तश्तरी’ का रात्रि भोज निमंत्रण: एक अलग सी बात है!!

होली के अगले दिन समीर लाल जी ने बम्बई से जबलपुर अपनी ससुराल पधारे नामचीन ब्लॉगर भाई विजय शंकर चतुर्वेदी जो आजाद लब के नाम का ब्लॉग चलाते हैं, के सम्मान में रात्रि भोज का आयोजन किया.

जल्दी जल्दी में जिन जिन ब्लॉगर्स को सूचित कर पाये, किया गया और १२ तारीख की शाम सब एकत्र हुए समीर लाल जी के पसंदीदा हॉल ’द एगज्यूकूटिव हाल’ जो कि जबलपुर के नामी होटल सत्य अशोका में है.



खुशी का मौका था. एक तो विजय शंकर जी जबलपुर आये हुए थे और दूसरा विजय शंकर जी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी. समीर लाल जी की दावतें यूँ भी बहुत शानदार होती हैं और उस पर से यह खुशी का मौका. पूरी मौज में दावत चली.

विजय जी ने सबको मिठाई खिलाई. समीर जी ने विजय शंकर जी की आ रही किताब की कविता पढ़कर सुनाई अपने निराले अंदाज में और जब उन्होंने अपना गीत पूरे तरर्नुम में सुनाया तो सभी आमंत्रित मंत्रमुग्ध से वाह वाह कर उठे. समीर जी ने अपने उदबोधन में सभी उपस्थित आमंत्रितों का, जिसमें बवाल हिन्दवी, मैं याने संजय तिवारी ’संजु’, सुनील शुक्ला जी, विवेक रंजन श्रीवास्तव, डूबे जी का विस्तृत परिचय विजय शंकर जी करवाया और विजय जी के अभिनव व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला.

बवाल हिन्दवी ने अपने सुरों और कव्वाली से महफिल को सजा दिया और विजय जी को जबलपुर की एक अलग सी याद गठरी में बाँध कर दी. विवेक रंजन श्रीवास्तव जी ने अपना नया व्यंग्य संग्रह सस्नेह विजय जी को भेंट किया और डूबे जी ने समीर लाल, विजय शंकर जी और विवेक रंजन जी का कार्टून त्वरित बना कर सबको दाँतों तले उँगली दबवा दी. सुनील शुक्ला जी ने जब तलत महमूद और मुकेश के गीत सुनाये तो महफिल झूम उठी.

कुल मिला कर सब ने वाह वाह करते ही शाम बिताई.

मिठाई खाओ!!

डूबे जी की कलाकारी




बहुत आभार समीर लाल जी का और आभार आपका विजय शंकर चतुर्वेदी जी जो आप अपने साले संग पधारे और आयोजन की शान बढ़ाई.

समीर लाल जी एक गज़ल पेश कर रहा हूँ जो उन्होंने इस महफिल में भी सुनाई थी:

समीर लाल


सुना है मंद है बाज़ार, अबकी बार होली में,
सुरा ने ख़ुब किया व्यापार, अबकी बार होली में.

सियासी चाल के क़िस्से, कभी इसके कभी उसके
ना छापे जो अगर अख़बार, अबकी बार होली में.

जिता कर लाए थे जिसको, बदलने मुल्क की सूरत
हुआ वो किस कदर लाचार, अबकी बार होली में.

रची हैं साज़िशें जिसने, पड़ोसी ही तो है अपना
हुआ घोषित वही गद्दार, अबकी बार होली में.

अमन ख़ुद यूँ न लौटेगा, जो तुम ख़ामोश ही बैठे
बदल लो जी, ज़रा व्यवहार, अबकी बार होली में.

ख़ुदा का वास्ता उसको, जो उनकी शान रखता हो
हुए पर सब वहाँ मक्कार, अबकी बार होली में.

सजी हैं महफ़िलें उनकी, के जिनके हक़ हुकूमत हैं
औ’ कुछ का बिक गया घरबार, अबकी बार होली में.

दिया है दर्द जिसने भी, वही आ कर दवा देगा
यही है कारगर उपचार, अबकी बार होली में.

फंसें हैं किस बवंडर में, भरोसा ख़ुद से उठ बैठा
चलो हम कर लें थोड़ा प्यार, अबकी बार होली में.

कहाँ तक रंग को मुद्दा बना कर रार ठानोगे ?
चलो जाने भी दो ना यार, अबकी बार होली में.

`समीर’ कह रहा तुमसे, ज़रा सा होश में आओ
दिखा दो तुम भी हो ख़ुद्दार, अबकी बार होली में.

-समीर लाल ’समीर’

17 comments:

श्यामल सुमन said...

सियासी चाल के किस्से, कभी इसके कभी उसके
छपा है इस तरह अखबार, अबकी बार होली में.

हकीकत से रू-ब-रू होती सामयिक रचना। संमीर भाई मैं भी कुछ जोड़ने की कोशिश कर रहा हूँ-

कीमतें उड़तीं हैं आकाश में पंछी बनकर।
कैसे जाऊँगा मैं बाजार अबकी बार होली में।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

दिनेशराय द्विवेदी said...

हमें नहीं पता था कि समीर जी इतनी शानदार पार्टियाँ देते हैं। वरना....
कविता बहुत अच्छी है, खास तौर पर इस होली के लिए।

इरशाद अली said...

वाह जी वाह समीर जी तो कमाल है।

Pramendra Pratap Singh said...

वाह,

हम भी तैयारी में है टाईम तलाश रहे है।

संजय तिवारी said...

समीर लाल जी के पसंदीदा हॉल ’द एगज्यूकूटिव हाल’ जो कि जबलपुर के नामी होटल सत्य अशोका में है और समीर लाल जी के भारत प्रवास के दौरान ज्यादा शाम उन्हीं के लिए बुक रहता है. आपकी अगर किस्मत अच्छी है या समीर जी की प्रवास के दौरान तबीयत खराब है या वो शहर के बाहर हैं, तो शायद आपको मिल जाये.

अनिल कान्त said...

sameer ji ki gazal to bahut shaandaar aur jaandaar hai

कुश said...

आचार सहिता लगने के बाद भोज.. राम राम राम

Unknown said...

क्या हो जाता है अबकी होली में पता ही न चला । रचना मस्त लगी।

Mohinder56 said...

वाह वाह... सारा माल खुद ही डकार गये और हमारे लिये छोड दी गजल भर :)

नीरज गोस्वामी said...

हम अपना शाश्वत प्रश्न यहाँ भी पूछते हैं जो हमने समीर जी की शादी में गए अनूप जी से पूछा था..."वहां खाया क्या?"
ग़ज़ल समीर जी की ही तरह धाँसू है...
नीरज

Doobe ji said...

wah sanju bhai ......aap ne us mehfil ki yaad taja kar di.....unforgetable

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जबलपुर आये हैं, ससुराल में होली मनाने को।

सुनाये गीत कुछ होंगे, समीरन को रिझाने को।

बना संयोग अच्छा था, निभाई मित्रता बेहतर,

विजय शंकर चुतुर्वेदी, बुलाये भोज खाने को।।

बने पकवान कैसे थे, महक आयी खटीमा तक।

समाँ बाँधा जबलपुर में,चहक छाई खटीमा तक।।

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

समीर लाल जी को धन्यवाद देते हुए संजय तिवारी ’संजू’ जी का आभार प्रकट करता हूँ जो यहाँ इतने आत्मीय ढंग से उन्होंने उस होली-मिलन को याद किया है. आप सभी टिप्पणीकारों का भी बहुत-बहुत शुक्रिया!

मानता हूँ कि इस टिप्पणी भर से काम नहीं चलेगा सो 'आजाद लब' में पूरी पोस्ट ही लिख दी है.

Vivek Ranjan Shrivastava said...

वाह वाह ., डिनर , कविता , मित्र , समीर जी की पार्टी सब कुछ बेहद जोरदार .था .आपकी .रपट वैसी ही स्वादिष्ट है ..मुझे खुशी है कि मैं इस सम्मिलन का हिस्सा था ...

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत बेहतरीन रिपोर्टिंग रही जी ये तो. और नीरज का कमेंत...समीर जी की शादी मे...ये समीर जी ने कब करली..????

हमने तो चिरंजीव की शादी का सुना था और निमंत्रण भी उसी शादी का मिला था.

समीर जी ने बिना निमंत्रण ही दूसरी...???

;०

रामराम.

Girish Kumar Billore said...

blag khane peene ki habar se bhara hai ham ne jaise hee baat aage badai ki bhiya sameer lal ji meet se milane nikal pade udhar baaboo balkishan se bhee milen un sabake saath AHAR/VIHAR/VICHAR karengen tab tak ............
khuda hafiz

shelley said...

achchhi post. main aa nahi pai thi. par aapne photo oe khabar ikha kar achchha kiya gajal bhi achchhi lagi. or baala ji ki tasviren to kamal hain. aapko bahut badhai