अभी दिन ही कितने बीते हैं जब उन्होंने साथ जीने मरने की कसमें खाई थीं. उस चाँद के नीचे, नदी किनारे बैठे, सात जन्मों तक एक दूसरे का साथ निभाने का वादा किया था. उसके तन से आती मादक खुशबू में नरेश कैसे नशे में झूम उठता था. उसका सर्वस्व वो, उसकी और सिर्फ उसकी आरती.
कितने उत्साह से दोनों शादी के बन्धन में बँधे और फिर डूब गये अपनी ही एक अनोखी दुनिया में. समय के साथ साथ नरेश अपने कैरियर में और आरती, इस घर के आँगन को किलकारियों से भर देने के लिए आने वाले नये सदस्य के आगमन की तैयारियों में जुट गई.
नरेश अपने कार्यक्षेत्र में तरक्की करता गया और आगे बढ़ने का नशा ऐसा सर चढ़कर बोला कि उसे कुछ ख्याल ही न रहा कि वो सिर्फ अपना ही नहीं, अपनी पत्नी आरती का भी है और उसकी जरुरत और किसी से ज्यादा उसकी आने वाली संतान को है. दिन भर काम में व्यस्त, शाम पार्टियों में और फिर देर रात शराब के नशे में धुत्त, घर लौटना और आते ही सो जाना, यही उसकी दिनचर्या हो गई. कब रश्मि पैदा हुई और कब तीन माह की हो गई, उसे पता ही नहीं लगा.
अनायास ही आई ये दूरियाँ आरती को चुभने लगीं. ऐसा नहीं कि आरती उसकी प्रगति की राहों में रोड़ा बनना चाहती हो या उसे नरेश का अपने कैरियर में आगे बढ़ना अच्छा न लगता हो मगर इन सबके बाद, रोज रात देर से शराब के नशे में चूर घर लौटना उसे नाकाबिले बरदाश्त गुजरता था. जब लाख समझाने पर नरेश न माना और बात बरदाश्त के बाहर हो गई, तो एक रात उसने नरेश के लौटने पर ऐसी बात कही कि नरेश के होश ही उड़ गये.
आरती ने साफ शब्दों में कह दिया कि या तो तुम शराब का संग कर लो या मेरा. हम दोनों एक साथ तुम्हारी संगनी बन कर नहीं रह सकतीं. आज तुम्हें हम दोनों में से एक को चुनना होगा अन्यथा मैं अपनी बेटी के साथ यह घर हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूँ.
नरेश के पैरों तले तो मानो जमीन ही खिसक गई.एकाएक उसकी नजर रश्मि के मासूम चेहरे पर पड़ी. वो एकटक बस नरेश को प्रश्नात्मक दृष्टि से निहारे जा रही थी मानो कह रही हो पापा, अगर आपको मम्मी छोड़ कर चली गई तो मुझे भी भूल जाना, मुझे तो मम्मी के साथ ही जाना होगा. सोचो पापा, मम्मी को तो कोई न कोई बेहतर जीवनसाथी फिर भी मिल जायेगा मगर मेरा क्या होगा? आपका क्या होगा?
मासूम का चेहरा देख नरेश की आँख से अपने आप ही आँसू बह निकले और उसने खिड़की से बाहर देखती अपनी पत्नि आरती के कँधे पर हाथ रखते हुए कहा: आरती, तुम्हें मालूम है आज कौन सा दिन है? आरती आश्चर्य से उसका मूँह देखने लग गई. नरेश जारी रहा; आज प्रमियों का दिवस है-वेलेन्टाईन डे और आज मैं तुम्हें एक तोहफा देना चाहता हूँ: आज से मैं शराब को कभी हाथ नहीं लगाऊँगा.
आरती को मानो सर्वस्व मिल गया इस वेलेन्टाईन डे के नायाब तोहफे के रुप में. वो पलट कर नरेश के गले लग गई और फूट फूट कर रोने लगी. ये खुशी के आंसू थे. रश्मि भी दोनों पैर उछाल उछाल कर किलकारी मारने लगी; मानो कह रही हो: मेरे मम्मी पापा जिन्दाबाद-वेलेन्टाईन डे जिन्दाबाद-शराब मुर्दाबाद!!
5 comments:
भाई संजय जी
नमस्ते
आज आपका ब्लॉग प्रथम बार देखा देखकर बहुत अच्छा लगा . आज की कहानी संदेश दे रही है कि शराब का सेवन करना कितना नुकसानप्रद है बहुत प्रेरक कहानी लगी . आभार
महेन्द्र मिश्र
जबलपुर.
बहुत अच्छी कहानी है। वैसे शराब के बिना भी पति अपनी प्रगति व सफलता के नशे में भी प्रायः पीछे रह गई पत्नी को भूल जाते हैं। पति की सफलता की यह कीमत बहुत सी पत्नियाँ चुकाती हैं।
घुघूती बासूती
प्रथम प्रयास अति सराहनीय है. बहुत सुन्दर संदेश देती कथा. ऐसे ही लिखते रहो, मेरी शुभकामनाऐं.
इतनी सुन्दर बातें और इतनी सुन्दर कहानी। मगर एक बात गैर सरकारी ---- शराब घर बर्बाद कर देती है। हा हा लेडीज़ शराब से क्यों नाराज़ रह्ती हैं इसका कारण खोजा जाए। और उस कारण को दूर कर दिया जावे तो दुनिया खुशहाल हो जाए। हा हा ।
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