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Friday, March 27, 2009
Wednesday, March 25, 2009
Friday, March 20, 2009
Wednesday, March 18, 2009
समीर लाल ’उड़न तश्तरी’ का रात्रि भोज निमंत्रण: एक अलग सी बात है!!
होली के अगले दिन समीर लाल जी ने बम्बई से जबलपुर अपनी ससुराल पधारे नामचीन ब्लॉगर भाई विजय शंकर चतुर्वेदी जो आजाद लब के नाम का ब्लॉग चलाते हैं, के सम्मान में रात्रि भोज का आयोजन किया.
जल्दी जल्दी में जिन जिन ब्लॉगर्स को सूचित कर पाये, किया गया और १२ तारीख की शाम सब एकत्र हुए समीर लाल जी के पसंदीदा हॉल ’द एगज्यूकूटिव हाल’ जो कि जबलपुर के नामी होटल सत्य अशोका में है.
खुशी का मौका था. एक तो विजय शंकर जी जबलपुर आये हुए थे और दूसरा विजय शंकर जी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी. समीर लाल जी की दावतें यूँ भी बहुत शानदार होती हैं और उस पर से यह खुशी का मौका. पूरी मौज में दावत चली.
विजय जी ने सबको मिठाई खिलाई. समीर जी ने विजय शंकर जी की आ रही किताब की कविता पढ़कर सुनाई अपने निराले अंदाज में और जब उन्होंने अपना गीत पूरे तरर्नुम में सुनाया तो सभी आमंत्रित मंत्रमुग्ध से वाह वाह कर उठे. समीर जी ने अपने उदबोधन में सभी उपस्थित आमंत्रितों का, जिसमें बवाल हिन्दवी, मैं याने संजय तिवारी ’संजु’, सुनील शुक्ला जी, विवेक रंजन श्रीवास्तव, डूबे जी का विस्तृत परिचय विजय शंकर जी करवाया और विजय जी के अभिनव व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला.
बवाल हिन्दवी ने अपने सुरों और कव्वाली से महफिल को सजा दिया और विजय जी को जबलपुर की एक अलग सी याद गठरी में बाँध कर दी. विवेक रंजन श्रीवास्तव जी ने अपना नया व्यंग्य संग्रह सस्नेह विजय जी को भेंट किया और डूबे जी ने समीर लाल, विजय शंकर जी और विवेक रंजन जी का कार्टून त्वरित बना कर सबको दाँतों तले उँगली दबवा दी. सुनील शुक्ला जी ने जब तलत महमूद और मुकेश के गीत सुनाये तो महफिल झूम उठी.
कुल मिला कर सब ने वाह वाह करते ही शाम बिताई.
मिठाई खाओ!!
डूबे जी की कलाकारी

बहुत आभार समीर लाल जी का और आभार आपका विजय शंकर चतुर्वेदी जी जो आप अपने साले संग पधारे और आयोजन की शान बढ़ाई.
समीर लाल जी एक गज़ल पेश कर रहा हूँ जो उन्होंने इस महफिल में भी सुनाई थी:
समीर लाल
सुना है मंद है बाज़ार, अबकी बार होली में,
सुरा ने ख़ुब किया व्यापार, अबकी बार होली में.
सियासी चाल के क़िस्से, कभी इसके कभी उसके
ना छापे जो अगर अख़बार, अबकी बार होली में.
जिता कर लाए थे जिसको, बदलने मुल्क की सूरत
हुआ वो किस कदर लाचार, अबकी बार होली में.
रची हैं साज़िशें जिसने, पड़ोसी ही तो है अपना
हुआ घोषित वही गद्दार, अबकी बार होली में.
अमन ख़ुद यूँ न लौटेगा, जो तुम ख़ामोश ही बैठे
बदल लो जी, ज़रा व्यवहार, अबकी बार होली में.
ख़ुदा का वास्ता उसको, जो उनकी शान रखता हो
हुए पर सब वहाँ मक्कार, अबकी बार होली में.
सजी हैं महफ़िलें उनकी, के जिनके हक़ हुकूमत हैं
औ’ कुछ का बिक गया घरबार, अबकी बार होली में.
दिया है दर्द जिसने भी, वही आ कर दवा देगा
यही है कारगर उपचार, अबकी बार होली में.
फंसें हैं किस बवंडर में, भरोसा ख़ुद से उठ बैठा
चलो हम कर लें थोड़ा प्यार, अबकी बार होली में.
कहाँ तक रंग को मुद्दा बना कर रार ठानोगे ?
चलो जाने भी दो ना यार, अबकी बार होली में.
`समीर’ कह रहा तुमसे, ज़रा सा होश में आओ
दिखा दो तुम भी हो ख़ुद्दार, अबकी बार होली में.
-समीर लाल ’समीर’
जल्दी जल्दी में जिन जिन ब्लॉगर्स को सूचित कर पाये, किया गया और १२ तारीख की शाम सब एकत्र हुए समीर लाल जी के पसंदीदा हॉल ’द एगज्यूकूटिव हाल’ जो कि जबलपुर के नामी होटल सत्य अशोका में है.
खुशी का मौका था. एक तो विजय शंकर जी जबलपुर आये हुए थे और दूसरा विजय शंकर जी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी. समीर लाल जी की दावतें यूँ भी बहुत शानदार होती हैं और उस पर से यह खुशी का मौका. पूरी मौज में दावत चली.
विजय जी ने सबको मिठाई खिलाई. समीर जी ने विजय शंकर जी की आ रही किताब की कविता पढ़कर सुनाई अपने निराले अंदाज में और जब उन्होंने अपना गीत पूरे तरर्नुम में सुनाया तो सभी आमंत्रित मंत्रमुग्ध से वाह वाह कर उठे. समीर जी ने अपने उदबोधन में सभी उपस्थित आमंत्रितों का, जिसमें बवाल हिन्दवी, मैं याने संजय तिवारी ’संजु’, सुनील शुक्ला जी, विवेक रंजन श्रीवास्तव, डूबे जी का विस्तृत परिचय विजय शंकर जी करवाया और विजय जी के अभिनव व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला.
बवाल हिन्दवी ने अपने सुरों और कव्वाली से महफिल को सजा दिया और विजय जी को जबलपुर की एक अलग सी याद गठरी में बाँध कर दी. विवेक रंजन श्रीवास्तव जी ने अपना नया व्यंग्य संग्रह सस्नेह विजय जी को भेंट किया और डूबे जी ने समीर लाल, विजय शंकर जी और विवेक रंजन जी का कार्टून त्वरित बना कर सबको दाँतों तले उँगली दबवा दी. सुनील शुक्ला जी ने जब तलत महमूद और मुकेश के गीत सुनाये तो महफिल झूम उठी.
कुल मिला कर सब ने वाह वाह करते ही शाम बिताई.



बहुत आभार समीर लाल जी का और आभार आपका विजय शंकर चतुर्वेदी जी जो आप अपने साले संग पधारे और आयोजन की शान बढ़ाई.
समीर लाल जी एक गज़ल पेश कर रहा हूँ जो उन्होंने इस महफिल में भी सुनाई थी:

सुना है मंद है बाज़ार, अबकी बार होली में,
सुरा ने ख़ुब किया व्यापार, अबकी बार होली में.
सियासी चाल के क़िस्से, कभी इसके कभी उसके
ना छापे जो अगर अख़बार, अबकी बार होली में.
जिता कर लाए थे जिसको, बदलने मुल्क की सूरत
हुआ वो किस कदर लाचार, अबकी बार होली में.
रची हैं साज़िशें जिसने, पड़ोसी ही तो है अपना
हुआ घोषित वही गद्दार, अबकी बार होली में.
अमन ख़ुद यूँ न लौटेगा, जो तुम ख़ामोश ही बैठे
बदल लो जी, ज़रा व्यवहार, अबकी बार होली में.
ख़ुदा का वास्ता उसको, जो उनकी शान रखता हो
हुए पर सब वहाँ मक्कार, अबकी बार होली में.
सजी हैं महफ़िलें उनकी, के जिनके हक़ हुकूमत हैं
औ’ कुछ का बिक गया घरबार, अबकी बार होली में.
दिया है दर्द जिसने भी, वही आ कर दवा देगा
यही है कारगर उपचार, अबकी बार होली में.
फंसें हैं किस बवंडर में, भरोसा ख़ुद से उठ बैठा
चलो हम कर लें थोड़ा प्यार, अबकी बार होली में.
कहाँ तक रंग को मुद्दा बना कर रार ठानोगे ?
चलो जाने भी दो ना यार, अबकी बार होली में.
`समीर’ कह रहा तुमसे, ज़रा सा होश में आओ
दिखा दो तुम भी हो ख़ुद्दार, अबकी बार होली में.
-समीर लाल ’समीर’
Monday, March 16, 2009
एक अखबार का अनोखा निवेदन
Tuesday, March 3, 2009
फिर ना पुकारो
फिर ना पुकारो मुझे तुम उन्ही बहारो मे,
आके कही खो ना जाऊ उन हसीं नजारो मे,,
यु तो तुम ने हॆ तड्फाया रात भर अधियारे मे,
अब तो जाके सो जाने दो दिन के उजियारो मे,,
आके कही खो ना जाऊ उन हसीं नजारो मे,,
यु तो तुम ने हॆ तड्फाया रात भर अधियारे मे,
अब तो जाके सो जाने दो दिन के उजियारो मे,,
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