जिन्दगी यूँ गुजर जायेगी आहिस्ता आहिस्ता,
घड़ी भी पाबंदी लगायेगी आहिस्ता आहिस्ता,
बेशक, तुम मुझे याद रखोगी कुछ दिन तलक,
फिर भूल भी मुझे जाओगी आहिस्ता आहिस्ता.
*~*~*~*~*
वो नाराज होता है कि कुछ लिखते नहीं ,
कहाँ से लायें वो लफ्ज जो मिलते नहीं ,
दर्द की गर जुबां होती तो बता देते उनसे,
वो जख्म कैसे दिखा दें जो दिखते नहीं.
-संजय तिवारी ’संजू’
Monday, April 27, 2009
अजब गजब तेरी माया..
वाह प्रभु!! ये कैसी तेरी लीला?
चूहा बिल्ली से डरता है ,
बिल्ली कुत्ते से डरती है ,
कुत्ता आदमी से डरता है,
आदमी बीबी से डरता है,
ओर बीबी चूहे से....
वाह रे चूहे!!
तू ही है महान....
हम तेरे सामने
प्राणी हैं नादान!!!
Wednesday, April 22, 2009
किताबों के पन्नों को पलट के सोचता हूँ,
यूँजिन्दगी भी पलट जाये तो क्या बात है.
ख्वाबों में तो हरदम मिलता ही है वो,
आ हकीकत में लिपट जाये तो क्या बात है.
कुछ मतलब लिए ढ़ूँढ़ते हैं सब मुझको ,
आ बेमतलब निकट जाये तो क्या बात है.
यूँ ही बिखरा बिखरा सा वजूद है मेरा ,
बातों से तेरी सिमट जाये तो क्या बात है.
छीन कर तो सब ले जायेंगे दिल मेरा ,
तेरी अदा पे रपट जाये तो क्या बात है.
था मौज में झूमता वो शराबी चला,
वो हकीकत में घट जाये तो क्या बात है.
जो शरीफों की संगत में ना काटे कटे
रात संग सुरा के कट जाये तो क्या बात है.
हर कदम पर मैं खुशियाँ लुटाता चलूँ ,
यूँ ही जिन्दगी निपट जाये तो क्या बात है.
Thursday, April 16, 2009
तुम गये कुछ दूर
तुम गये कुछ दूर मुझसे,मन उदास सा हो गया ,
याद आना दिल दुखाना,कितना खास सा हो गया ,
रहा सुनता रोज था,चला जाऊँगा मै फिर एक दिन,
यूँ छोड़ कर तेरा जाना, अनायास सा हो गया ,
न आने को जाते, तो बहला लेते हमीं खुद को
समझ लेते अब समीर इक आस सा हो गया.
ताकता आसूं बहाता मैं रह पाऊँगा कब तलक,
नाम तेरा जब भी आया, बदहवास सा हो गया.
याद आना दिल दुखाना,कितना खास सा हो गया ,
रहा सुनता रोज था,चला जाऊँगा मै फिर एक दिन,
यूँ छोड़ कर तेरा जाना, अनायास सा हो गया ,
न आने को जाते, तो बहला लेते हमीं खुद को
समझ लेते अब समीर इक आस सा हो गया.
ताकता आसूं बहाता मैं रह पाऊँगा कब तलक,
नाम तेरा जब भी आया, बदहवास सा हो गया.
Wednesday, April 8, 2009
भाई समीर लाल जी द्वारा बिखरे मोती के अंतरिम विमोचन की रपट
दो दिन बीते. न कोई कमेंट, न अधिक ब्लॉग विचरण. कोई ब्लॉग वैराग्य जैसी बात भी नहीं बस शनिवार को लंदन रुकते हुए कनाडा वापसी की तैयारी है तो बस!! समयाभाव सा हो लिया है. इस बीच मेरी पहली पुस्तक ’बिखरे मोती’ भी पंकज सुबीर जी और रमेश हटीला के अथक परिश्रम के बाद शिवना प्रकाशन से छप कर आ ही गई. छबि मिडिया याने बैगाणी बंधुओं ने कवर सज्जा भी खूब की.
अपनी पहली पुस्तक यूँ भी किसी लेखक के लिए एक अद्भुत घटना होती है और तिस पर से यह रोक कि परम्परानुसार बिना विमोचन आप इसे मित्रों को दे भी नहीं सकते. मन को मना भी लूँ तो हाथ को कैसे रोकूँ जो कुद कुद कर परिवार और मित्रों को पुस्तक पढ़वाने और वाह वाही लूटने को लालायित था.
याद आया कि मैने अपने पुत्र पर रोक लगाई थी कि बिना सगाई वधु के साथ घूमने नहीं जाओगे और सगाई हमारे आये बिना करोगे नहीं. बेटे ने तो़ड़ निकाली कि रोका का फन्कशन कर लेता हूँ फिर सगाई जब आप कनाडा से आ जायें तब. क्या अब घूम सकता हूँ? बेटा बाप से बढ़कर निकला और हम चुप. बस उसी को याद करते सुबीर जी को फोन लगाया. विमोचन कनाडा में हमारे गुरुदेव कम मार्गदर्शक कम मित्र कम अग्रज राकेश खण्डॆलवाल जी से ही करवाना है और इस बात पर मैं अडिग हूँ तो फिर पुस्तक कैसे बाटूँ?
अनुभवी पंकज सुबीर जी ने सोच विचार कर सलाह दी कि रोका टाइप एक अंतरिम विमोचन कर लिजिये और बांट दिजिये. मुख्य विमोचन कनाडा में कर लिजियेगा. बेटे को रोका जमा था और हमें ये.
आनन फानन, प्रमेन्द्र महाशक्ति इलाहाबाद से आ ही रहे थे, एक ब्लॉगर मीट रखी गई और वरिष्ट साहित्यकार आचार्य संजीव सलिल जी के कर कमलों से अन्तरिम विमोचन हुआ.
कार्यक्रम में आचार्य संजीव सलिल, प्रमेन्द्र, तारा चन्द्र, डूबे जी कार्टूनिस्ट, गिरिश बिल्लोर जी, संजय तिवारी संजू, बवाल, विवेक रंजन श्रीवास्तव, आनन्द कृष्ण, महेन्द्र मिश्रा और मैं उपस्थित था. संजीव जी ने विमोचन किया और सभी ने किताब से एक एक रचना पढ़ी. शिवना प्रकाशन के भाई पंकज सुबीर, रमेश हटीला जी, छबी मिडिया के बैगाणी बंधुओं का विशेष आभार व्यक्त किया गया.
इस अवसर पर लिए गये कुछ चित्र और विस्तृत रिपोर्ट महेन्द्र मिश्रा जी प्रस्तुत कर ही चुके हैं.
वैसे बवाल की कव्वाली, विवेक जी और गिरिश बिल्लोरे जी कविता ने कार्यक्रम का समा बांध दिया.
अपनी पहली पुस्तक यूँ भी किसी लेखक के लिए एक अद्भुत घटना होती है और तिस पर से यह रोक कि परम्परानुसार बिना विमोचन आप इसे मित्रों को दे भी नहीं सकते. मन को मना भी लूँ तो हाथ को कैसे रोकूँ जो कुद कुद कर परिवार और मित्रों को पुस्तक पढ़वाने और वाह वाही लूटने को लालायित था.
याद आया कि मैने अपने पुत्र पर रोक लगाई थी कि बिना सगाई वधु के साथ घूमने नहीं जाओगे और सगाई हमारे आये बिना करोगे नहीं. बेटे ने तो़ड़ निकाली कि रोका का फन्कशन कर लेता हूँ फिर सगाई जब आप कनाडा से आ जायें तब. क्या अब घूम सकता हूँ? बेटा बाप से बढ़कर निकला और हम चुप. बस उसी को याद करते सुबीर जी को फोन लगाया. विमोचन कनाडा में हमारे गुरुदेव कम मार्गदर्शक कम मित्र कम अग्रज राकेश खण्डॆलवाल जी से ही करवाना है और इस बात पर मैं अडिग हूँ तो फिर पुस्तक कैसे बाटूँ?
अनुभवी पंकज सुबीर जी ने सोच विचार कर सलाह दी कि रोका टाइप एक अंतरिम विमोचन कर लिजिये और बांट दिजिये. मुख्य विमोचन कनाडा में कर लिजियेगा. बेटे को रोका जमा था और हमें ये.
आनन फानन, प्रमेन्द्र महाशक्ति इलाहाबाद से आ ही रहे थे, एक ब्लॉगर मीट रखी गई और वरिष्ट साहित्यकार आचार्य संजीव सलिल जी के कर कमलों से अन्तरिम विमोचन हुआ.
कार्यक्रम में आचार्य संजीव सलिल, प्रमेन्द्र, तारा चन्द्र, डूबे जी कार्टूनिस्ट, गिरिश बिल्लोर जी, संजय तिवारी संजू, बवाल, विवेक रंजन श्रीवास्तव, आनन्द कृष्ण, महेन्द्र मिश्रा और मैं उपस्थित था. संजीव जी ने विमोचन किया और सभी ने किताब से एक एक रचना पढ़ी. शिवना प्रकाशन के भाई पंकज सुबीर, रमेश हटीला जी, छबी मिडिया के बैगाणी बंधुओं का विशेष आभार व्यक्त किया गया.
इस अवसर पर लिए गये कुछ चित्र और विस्तृत रिपोर्ट महेन्द्र मिश्रा जी प्रस्तुत कर ही चुके हैं.
वैसे बवाल की कव्वाली, विवेक जी और गिरिश बिल्लोरे जी कविता ने कार्यक्रम का समा बांध दिया.
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